जीवन के इन गुजरे - बीते सालों में
कितनी बातें ऐसी थीं , कुछ याद रहीं
कूछ भूल गये .
फ़िर छेड़ा तराना किसी ने बनके नव जीवन का
बीती बातें याद हुईं , कुछ भूल गये
कितने सावन ऐसे थे , हरियाली थी
फूलों से भरी डाली थी , झूले थे
इनसब में हम खुद को भूले थे
वो भी पल कुछ याद रहे कुछ भूल गये
भादो की वो बरसाती यादें ,
आँसू बन गिर आये थे , कुछ आँसू
टपके थे जो शादी (ख़ुशी ) थे
कुछ आँसू थे जो बरबादी थे
हम भी उनके संग बह निकले
कुछ याद रहे कुछ भूल गये
कम्बल की तो थी बात निराली
जज्बातों को कितने इसमें कैद किये
खुशियों की थी गर्माइश इसमें
कितने ग़म के आँसू इसमें पिन्हान (दफन , छुपाना ) हुए .
कुछ याद रहा कुछ भूल गये
पीली सरसों ने भी दस्तक दी थी
क्या कुछ था पुरजोर कहा
त्योहारों के दिन हैं आये , संग
तुझको तेरा महबूब मिला
इतनी बातें ऐसी थीं , इतनी बातें कैसी थीं
क्यों मन अब वैरागी हो निकला
जीवन के इस आपा - धापी में
कुछ बातें याद रहीं कुछ भूल गये
मन बावरा जब भी शंकित हो जाता है
बहलाते हम इसको अक्सर , देखो इस नभ के
अम्बर को , क्या टूटे तारों का ये शोक मनाता है
हर रात अंधियारा छाता जाता है , फ़िर
एक नया सबेरा आता है , आओ इसका
स्वागत कर लें , लेके संग अपने उन यादों को
जो कुछ याद रहा कुछ भूल गये .
@ Ajha . 01. 03. 16
Friday, 1 April 2016
इन गुजरे बीते सालों में . . . .
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