Friday, 1 April 2016

समंदर को खुद पे गुरूर कितना . . . .

समंदर को खुद पे हो गुरूर कितना भी
हमें तो लगे दरिया का साथ ही भली .

ज़िंदगी गुरुरों से चलता नहीँ
टेढ़े - मेढे रास्तों पे आसानी से सफ़र कटता नहीँ

ऊपर देख कर चलने से खाइयां दिखती नहीँ
जो नीचे देखकर चले तो होता  ठोकरों का डर

ज्यों रौशनी में रहने की आदत हो तो इंसान सो  सकता नहीँ
अंधियारे में जीने की आदत हो तो कभी राहे- मंज़िल पा सकता नहीँ

तन्हाइयों में रहना भी हमेशा सुकुनबख्श होता नहीँ
थोड़ी भीड़ की भी आदत हो,  तो हो बेहतरी .

वक्त हमेशा हरपल साथ देता नहीँ
हिम्मते - इंसान हो तो वक्त भी दामन छोड़ता नहीँ

जीवन इक ठहराव है , जीवन इक एहसास है
जीवन इक धारा है , बस संग इसके ही बहें  

माटी के  बने हम पुतले मिट्टी में मिल जाना है  
मानिंदे  वैरागी , मद - मस्त जीवन जी के  जाना है .
@ Ajha .22. 03.
Aparna Jha .

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