Monday, 11 April 2016

मेरे मौला ऐसा तू . . .

बैरागी का मन है
उन्मुक्त है
मनमुक्त  है
ना चाहतों की बातें
ना वस्ल की ख़्वाहिशें
ना कोई सपना
हर कोई अपना
दुनियाँ  चमत्कारों का डेरा
भीड़ में हर कोई अकेला 
खुश रहना है तो अपना सब कुछ त्याग कर
प्रकृति से जुड़ने का प्रयास कर
खोया जो तूने भूल जा
माया के जन्जालों से खुद को  हटा
फ़िर बाकी जो बचा
है वो शून्यता - शून्यता
इस शून्यता को लेके चल
बह्म का तू ज्ञान कर
वैरागियों -सा ध्यान कर
बंधनों में खुद को ना यूँ जकड़
जीवन पर ना एहसान कर .
खुशियाँ से जीना है यहाँ
जमीं को जन्नत कर , जन्नत कर
या खुदा इक रहम कर
एक- सी देखने की नज़र तूँ अता कर
फ़िर ना कोई रहबर
ना कोई मजलूम
ना कोई दीन - ओ - धरम
ना पैमाना
हर दिल आशिकाना - आशिकाना
ख़ुशियों में होगा ज़माना
फ़िर होगा फक्र  अपने नसीब पर
मेरे  मौला !  आफरीन - आफरीन
हो तेरे नाम पर . 
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आज फ़िर इस गेरुआइ रंग ने फूल के बहाने से ही सही मुझे याद दिला गया  _ " बैरागी है मन मेरा "
- - - - - - - - @ Ajha .

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