Friday, 1 April 2016

तन से दूर हो बेशक बेटियाँ . . . .

आज हम कुछ सखियों की मनोदशा लगभग मिलतीजुलती- सी ही रही. अमिताजी अपने मायके से लौटी थीं , मन्जुलाजी अपनी बेटियों को हॉस्टेस्ट विदा की थीं और मेरे माँ - बाबूजी पहली बार 6दिन मेरे यहाँ हँसी ख़ुशी बीता कर गये थे . सबों ने अपनी मनोदशा का बड़ा ही सही चित्रण किया . तो मुझे भी अपनी मनोदशा
सान्झा करने की इच्छा हुई _

तन से बेशक दूर हो जाये बेटियाँ
मन से कभी दूर जाती नहीँ
एक माँ - बाप का प्यार होती है वो
और दूसरे को अपना बना लेती हैं बेटियाँ
इतना प्यार भरा है दामन में कि
दूर रहकर भी याद आती हैं बेटियाँ .
पराई तो अपने मन से  हमने बनाया है
दूर देस का फ़ैसला भी उसे सुनाया है
कितने संग दिल हैं हम खातिर बेटियों के
हमेशा हिचकियों से अपनी सताया है उसे
अब रहने दो , हरहाल में जीने दो उसे
.मंज़िल खड़ी है बाँहें फैलाये
उसके राहे - सफ़र को और मुश्किल ना करो@ Ajha . 27. 03. 16

No comments:

Post a Comment