Sunday, 17 December 2017

करीबी

"करीबी", को प्रतिलिपि पर पढ़ें : http://hindi.pratilipi.com/story/%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%AC%E0%A5%80-kojjgu1aphg2?utm_source=android&utm_campaign=content_share भारतीय भाषाओँ में अनगिनत रचनाएं पढ़ें, लिखें और दोस्तों से साझा करें, पूर्णत: नि:शुल्क

Sunday, 12 November 2017

विद्रोही मन

विद्रोही मन सब जानता है
बांध कब टूट जाये नहीं पता है
ज्वालामुखी प्रस्फुटन पर है
सम्भालो की सैलाब आने ना पाये
संभालो की कोई चिंगारी सुलगाने ना पाये
प्यारी सी एक रूह है
समंदर का सीना है
अपने सरहद की निगहबान यही
खुद के ज़ज़्बातों की कद्रदान यही
अरे ये नारी है बस समझो इसको
और ना कोई दरकार इसे
बस स्वीकार करो,स्वीकार करो
मंज़िलों की पवाज़ है,उड़ने दो
उपकार समझ ना उपकार करो
ना उपकार करो.
Aparna Jha

Thursday, 14 September 2017

शाम्भवी दी(हिंदी दिवस के बहाने एक संस्मरण)

"शाम्भवी दी"
हिंदी दिवस के बहाने(संस्मरण)

"अरे कहाँ हो मंजू, सोना, मोना !कोई तो दया करो इस गरीब पर.....मुँह टेढिया टेढिया के बोलकर थक गई हूँ....."
"ऐसा क्या हुआ....शाम्भवी दी???
"अरे कुछ नहीं सोना...बस कुछ इतिहास के विभाग में अहिन्दी भाषी लोग आए थे....बात चीत थोड़ी लंबी खींच गई.....वो भी अंग्रेज़ी में.....अब तो चाय पिला दो."
हम सबकी चहेती, गंगा होस्टल में रहने वाली 'शाम्भवी दी'. बिल्कुल  ठेठ बिहारी मस्ती वाला अंदाज़...कैम्प्स में जहां से वो गुज़रती, विद्यार्थी लोग उनकी सादगी और बोलने केअंदाज़ के कुछ इस तरह दीवाने थे कि होस्टल तक उनका पीछा करते...और इस बीच किसी को उन्होंने टोक क्या दिया बस शर्म से मानों सैंकड़ों घड़ा पानी उस बच्चे पर पड़ जाता.
शाम्भवी दी पटना की एक अमीरघर की बेटी थी जिन्होंने मिशनरी स्कूल से शिक्षा ले उच्च शिक्षा दिल्ली के लेडीज़ श्रीराम कॉलेज से की और फिर जेएनयू में शोधकर्ता के रूप में रहीं.
वो छात्र जो दूसरे राज्यों से हिंदी माध्यम से पढ़कर आते उनके लिए शाम्भवी दी तो मानो वरदान से कम नहीं.ऐसा इसलिए कि इस युनिवर्सिटी में लोगबाग अंग्रेजी ही खाते-पीते,उठते-बैठते और सांस भी अंग्रेज़ी में ही लेते.ऐसे में कुछ दिनों के लिये नये प्रवेश लिए हुए हिंदी भाषियों  का तो जैसे अंग्रेज़ी संग सामना मानो कान बहरा हो जाना शरीर फूल जाना ,ऐसी ही हालत हुई रहती.
हालांकि शाम्भवी दी जितनी ही सुंदरता से हिंदी बोलती उतने ही सौम्यता से अंग्रेजी.परन्तु ज्यादा समय उनका वो अजबे-गजबे वाला भोजपुरिया हिंदी ... क्या गज़ब ढाता... इस बात के गवाह वहां का हर एक विद्यार्थी और प्रशिक्षक थे.
उनसे जब भी कोई हैरानीवश पूछ बैठता की तब जब कि वह इतनी अच्छी अंग्रेज़ी बोलती हैं और इतनी कुशाग्र बुद्धि भी, फिर भी जानबूझ कर अपनी ऐसी छवि उन्होंने क्यों बना रखी हैं?तब वह पूरी गंभीरता से यही कहतीं .... "जैसे जीवन के लिये आक्सीजन जरूरी है वैसा ही महत्व भाषा का भी हमारे जीवन पर है.वो भाषा जिसे बोलकर अपना बचपन, अपनी जवानी अपने ढलते उम्र को जिया है उसकी जगह, समय की जरूरत अनुसार जिस नई भाषा को अंगीकार किया वो उसकी जगह भला कैसे ले सकता.वह तो हमारे आत्मा की आवाज़ है जो हमें उस तक पहुंचाती है, हमारे और उसके बीच एक रिश्ता कायम कराती है...रिश्ता करीबी का....प्रेम का...अपनेपन का...
उससे भला मुझे कोई कैसे अलग कर सकता???मुझ से मेरी भाषा का खोना यानि मेरे शरीर को मेरी आत्मा से अलग करना.....अच्छा,
तुम ही लोग  बताओ...क्या ऐसा कभी संभव है भला!!!
तीन वर्षों का सानिध्य उनसे और फिर देश के सर्वोच्च सेवा की परीक्षा में राष्ट्रीय स्तर पर 19सवें स्थान को प्राप्त कर अपने कर्मक्षेत्र की ओर शाम्भवी दी चल पड़ीं.कितना कुछ सीखने को मिला,कितना कुछ सिखा गईं उन तीन वर्षों में. हिंदी भाषा उनकी अपने जमीन से जुड़ाव और अक्षुण्ण प्रेम की अभिव्यक्ति का रूप थी जिसे वो भरपूर जीती थीं और इसे कभी अपने से अलग देखना भी नहीं चाहती थीं...
बस ऐसी ही थीं हमारी 'शाम्भवी दी'.
Aparna Jha

Monday, 4 September 2017

तूफान

"तूफान"
"हाँ माँ, अब बहुत हो चुका, नैना को जहां जाना हो वो जाए."
"अरे बेटा ! वो हमारी बहु है , वो भला कहां जाएगी...."
"माँ ,ये आप ऐसा सोचती हैं ना...परन्तु सुनैना कुछ और ही सोचती है.तंग आ गया हूँ  उसके अपने परिवार और दोस्तों की प्रशंसा सुनते सुनते...."
".....समय का अब और इंतिज़ार नही कर सकता...ना तुम उसकी अच्छी सास और ना ही मैं अच्छा पति बन पाया."
"ये भी बात सही है कि हम उसकी नादानियां भी समझते हैं और फिर उससे प्यार भी करते हैं."
"तो फिर ऐसा फैसला क्यों???"
"माँ समझा करो..."
"हम अपने प्यार के लिए उसकी जिंदगी तबाह तो नहीं कर सकते ना!
वैसे भी घर में तो अशांति ही तो छाई रहती है...."
"अब मैं क्या कहूँ..... जैसा तुम ठीक सोचो बेटा...."
तभी सुनैना की आवाज़ आई.वह अपने सूटकेस संग मायके विदा हो गई.
तीन-चार चार दिन बाद ....
"हैलो, नैना बोल रही हूँ....
तुम सुन रहे हो ना मेरी बात....
अजय मुझे प्यारी हवाओं के झोंकों की आदत है, ये मुझे किस तूफान में झोंक किनारे लग गए हो....
मुझे तुमलोगों की आदत है, मैं ऐसे में जी नहीं पाऊंगी....
तुम आते क्यों नहीं.... मुझे अपने और तुमलोगों के प्यार का अंदाज़ा ना था ...
आये तूफान को तुम्हीं टाल सकते हो....
सुन रहे हो ना मेरी बात....
हैलो....हैलो...."
Aparna Jha

Thursday, 3 August 2017

"प्रायश्चित", को प्रतिलिपि पर पढ़ें : http://hindi.pratilipi.com/aparna-jha/prayashchit?utm_source=android&utm_campaign=content_share भारतीय भाषाओँ में अनगिनत रचनाएं पढ़ें, लिखें और दोस्तों से साझा करें, पूर्णत: नि:शुल्क
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Tuesday, 1 August 2017

सत्य की खोज

"सत्य की खोज"
एक पढ़ाई जो हमने पढ़ी थी
सीधे-सीधे रास्तों से होकर गुजरी थी
ना था तब यूँ शोर -शराबा
बस योगियों वाली सुधि थी.
एक आठ बजे का छोटा सा समाचार
बी.बी.सी सुनो तो थोड़ा और विस्तार
पर कहां लोग इतने उतावले हुए पड़े थे
उन्मादियों का भी पहरा ना इतना विकराल
जान पड़ा था
राजनीति की सरगर्मियां ना उतनी तीखी
बाण चला रहा था
आज दुनिया जो सिमट कर हथेली में बैठ गई है
हर कोई है दोस्त हर कोई अजनबी है
हाथ बढाएं भी तो कैसे
ना जाने अगले के हाथों की लकीर किस
बात से बंधी है
वो ज़माना अब कहाँ रहा
भटका जो रास्ता मुसाफिर
अनजान राहगीर ने हाथ थाम लिया
विश्वास था कि मंजिल तक
पहुँचायेगा वो जरूर
पर आज की शिनाख्तगी है बड़ी
टेढ़ी-मेढ़ी ,उलझी-उलझी
हरेक राह उन्मादियों से भरी पड़ी
कौन सत्य पथ पर चलाएगा
कौन ठगी के राह ले जाएगा
कहीं आतंकियों से तो
ना है सांठ-गांठ उसकी
कहीं धर्म की रोटियां तो
ना सेक रहा है कहीं कोई
कहीं कालाबाज़ारी जोर-शोर है
आवाजें उठ रही हैं भ्रष्टाचार
बेजोड़ है
जो कोई अपना आ गया इस
चपेट में
शक जो गहराया एक से
या रब ! मैं ढूंढने लगा हूँ
वो छुपा शख्स
चेहरा नेक में.
Aparna Jha

Saturday, 15 July 2017

Wednesday, 12 July 2017

Tuesday, 4 July 2017

Monday, 3 July 2017

Sunday, 2 July 2017

Thursday, 29 June 2017

परवाज़

"परवाज़"

बातों से निकली जो बात
खुल रहे है अब परत दर परत राज़
बचपन में रंग बिरंगी तितलियों की
उड़ान के पीछे भागना
पंछियों के झुंड में शामिल हो
सोच हवाबाज़ीयों का
ख़यालों के वो पुष्पक विमान
मस्तिष्क पटल पर हमेशा निहारना
डोर संग पतंग ये दृश्य विहंगम
मन बावरा हुआ जाता
उड़ानों में थी आकर्षण ऐसे
ऊंचाइयों को छूने की कोशिशों में
मन प्राण एक हो गये हो जैसे
वही उड़ान जो बचपन में
उड़ती तितलियों को पकड़ने से
आगाज़ हो ,अब मंजिल बन गई
उम्र के अनेकों पड़ाव को छू
जिंदगी की परवाज़ बन गई.
Aparna jha
30.06.17

Wednesday, 28 June 2017

Friday, 23 June 2017

Thursday, 22 June 2017

#मन तितली #YQ didi Follow my writings on https://www.yourquote.in/aparna-jha-w03/quotes/ #yourquote

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करीबी

"करीबी"
कितने शर्मीले से थे तुम...
कभी अपनें मन की कुछ कह नहीं पाते.आरम्भ में मैं भी बड़ी हैरां परेशान रहती कि भला ये आदमी कैसा है,क्या इसमें अपनी चीजों को रखने का सलीका नहीं?
जब देखो कुछ ना कुछ ढूंढते रहता है, और फिर उसे पता भी नही कि आखिर वह ढूंढ क्या रहा है....मेरा तुम्हारे नज़र से ओझल होना तुझे एक पल के लिए भी मंजूर नही होता...पर ये बातें मुझे पता भी कैसे चलती....मैं तो मन ही मन खीझती रहती ...कैसी ये क्या ज़िंदगी है!...मुझे तो एकांत में अपने आप से बातें करते हुए बड़ा आनंद आता.कभी हरियाली देख ,कभी पक्षियों का आपसी संवाद को समझने की कोशिश करना ,कभी क्षितिज को दूर तक निहारना और उनमें अनेकों अक्स ढूंढना,प्रकृति में खुद को तलाशना_यही तो मेरी ज़िंदगी थी,जिससे मैं हमेशा खुद को जुड़ा महसूस करती थी. तुम्हारा मेरे जीवन में आना ....जैसे कोई नई पहेली ने जन्म ले लिया हो और उसे मुझे पूरे जीवन समझना होगा ....क्या ये सम्भव होगा...क्या मैं जीवन के इस पहेली को सुलझा पाऊंगी....!
आज तुम्हारे साथ इतने साल रहते गुज़रे और वो अनजानी पहेली अब मेरी बेहद खूबसूरत सहेली बन गई.अब मैं तुम्हारे मन की बातें पढ़ पाती हूँ, तुम्हारे बिना बोले उन एहसासों को समझ पाती हूं ,अब शायद इतने अल्फ़ाज़ों की जरूरत भी नही....साकित मन तुम्हारे चंचल मन को समझ चुका है.पर हाँ, तुम बहुत कुछ तो बदल गए परन्तु एक बात जो नही बदली .....यह समझ पाने में तुम अब भी धोखा खा जाते हो कि मैं तुम्हारे मन की बिन कहे समझ  पाई या नही .ऐसी परिस्थिति में तुम्हारी बेचैनी और खीझन को चुपचाप आनन्दमगन निहारती रहती हूं.और फिर से वही तुम्हारा वो शर्माना....कमाल!
दूरियों को नापते हुए आज हम कितने करीब हो गए......
@Ajha.20.06.17

Saturday, 17 June 2017

प्रेम वार्ता

घटा मन भावन
अति सुहावन
मन हुआ चितचोर
चाँद भी ढूंढे चकोर
लगे अति पावन
बड़ा लुभावन
दादुर नाचे
लगे सुख पावन
भीगे तनमन
नदी बीच धारे
बजे जलतरंग
बैठ संग तुम्हारे
नदी किनारे
शर्माते,नैना झुक जाते
शांति सी छाई
बहे शीतल पवन
नैना करे इशारे
अंतर्मन तुझी को पुकारे
करना चाहे तुझी से बतियाँ
प्रिय!अब कुछ तो कहो
मेरे मन की
हारी मैं हारी
होके तिहारी
बस जान जाओ मन की मेरे
जीवन अपना है अब ऐसा
मैं तेरी राधा बन
तूँ मेरा है मुरली बजैया
तुम छेड़ो अब तान
मैं तेरी धुन बन
जीवन तर जाऊँ
पार उतर  आऊं
प्रिय ! सुनो ना मेरे मन की बात.
प्रभु ! सुनो ना मेरे मन की बात.
@Ajha.17.06.17

Friday, 16 June 2017

#खुदाई #YQ didi Follow my writings on https://www.yourquote.in/aparna-jha-w03/quotes/ #yourquote

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वक्त वक्त की बातें....

"वक्त-वक्त की बात..."

वक्त वक्त की बात है
कभी मैंने समझा नही
कभी तुमने सुना नही
कहने सुनने का अब
वक्त बचा नही

वक्त वक्त की बात है
ना थी मैं तुझे मंजूर
ना मंजूर तूँ मुझे
आज सब कुछ लुटा हुआ
हैं खुद से कितने दूर

वक्त वक्त की बात है
भीड़ थी फिर भी खामोशियाँ
आज तन्हाई है फिर भी
है शोरगुल कितना

जब कभी भी थे दूर तब
नज़रें ढूंढ़तीं थीं आसपास
जब पास तेरे साथ हैं
नज़रें फिर भी ढूंढ़तीं हैं दूरतलक

अब ना मैं, ना तुम
और ना ही तन्हाई
वक्त वक्त की बात हैं
सब वक्त वक्त की बात.
@Ajha,16.06.17

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Wednesday, 7 June 2017

Tuesday, 23 May 2017

#प्यार बिकता नहीं दुकानों में #YQdidi Follow my writings on http://www.yourquote.in/aparna-jha-w03/quotes/ #yourquote

Wednesday, 17 May 2017

Monday, 15 May 2017

Sunday, 14 May 2017

Thursday, 11 May 2017

दोस्ती

पल दो पल का
मिलना, फिर
शिनाख्तगी और फिर
हमशिनाख्त हो गए
अलबत्ता
ना था मालूम कि
दोस्ती एक एहसास है
इस कदर निभती कि
आगाज़ अजनबी सा
शिनाख्तगी फिर
हमशीनख्त और फिर
हमदान
साथ जो निभी तो
सफर में हमसफ़र,
हमकदम हो गए
ऐतबार जो हुआ
अहतरामी दोस्ती में आ गई
हमवफ़ा से हमराज़ और
ताल्लुक़ातों से
फिर हमनफ़स,हमदम
हो गए
बात जो आगे बढ़ी
जान और जानेजाना एक
दूजे के हो गए
दोस्ती की तिलिस्म ऐसी
की कुछ और ना सूझे
बस रहमत,रब और खुदा
ही दिखाई दे
या रब क्या खूब ये
नेमत अता की तुमने
दो जहां एक नज़र आते हैं
हर दोस्त आपके नाम
'आफरीन-आफरीन'
फरमाते हैं.
@Ajha.12.05.17

"स्वप्न मन का मेरे"

"स्वप्न मन का मेरे"

मेरे जीवन की परिक्रमा
तुम्हारा साथ
धूरी है मेरे अंतस
से निकलती भावना जो,
शब्दों के रूप में
कविताओं का रूप ले
ना जाने किन-किन लोकों का
विचरण कर रही
विहंगम दृश्यों से नाता जोड़ती
कभी परियों के देश
ले परियों का भेष
स्वप्नलोक के सपने देखती
कभी स्वर्गलोक में संग
अप्सराओं के नाचते थिरक रही
कभी तानसेन की रागिनियाँ बन
दीपक सा प्रज्वलित हो
जगत से तम दूर कर रही
कभी मल्हार हो बरस-बरस
खुशियां बरसा रही
बासंती हवाओं में खुद को
विलीन कर
लुकाछिपी खेलती
फिर से वही वेद-पुराणों की भाषा बन
पुनः ऋचाओं का सृजन कर
संस्कार और संस्कृति की
पहचान बन
ब्रह्मांड में प्रेम सुधा बरसाती
ऐसी में सराबोर होते रहते
तुम-हम और हम-तुम, संग
सारे संगी-सहारे
विलुप्त हुआ जाता अहंग
और सार तत्व
"वसुधैव कुटुम्बकम"
यही हमेशा सौंदर्य बोध
भूत, वर्तमान और भविष्ये
मेरे सपनों के इस संसार में
तुम होना मेरे संग प्रिये.
@Ajha.11.05.17

#मन #आहत #है टीवी चैनेलों पर बहस और दलीलों को सुन कर😢😢😢

#मन #आहत #है  टीवी चैनेलों पर बहस और दलीलों को सुन कर😢😢😢

चाहे तीन तलाक का हो या परित्यक्तता का
दलील चाहे जितनी भी दे दो पर जरा सोचो क्या बीतती होगी उस स्त्री पर , ऐसे परिवारों पर जिनकी बेटियां ऐसे हालात का शिकार होती हैं. इन हालातों पर बुद्धिजीवियों, नेताओं और धार्मिक उलेमाओं का बयान कितना अशोभनीय, अतार्किक, असंगत एवं न्याय विरोधी बयान दे पाना कैसे संभव हो पाता है???
वो स्त्री जो एक माँ ,एक बहन और एक पत्नी का रूप ले पुरुष के हर सम-विषम परिस्थितियों में अपनी परवाह किये बिना उसका साथ निभाती है , ऐसे में एक पुरुष का ऐसे तुच्छ बयानबाज़ी क्या निंदनीय नहीं. वो मां जिसने अपने बेटों को बनाने में ना जानें कितनी राते सोई ना हों ,शायद कितनी दफा यूँ भी गुज़रा हो जो रोटी का एक टुकड़ा पेट भरने को मयस्सर ना हुआ हो, अपने आँखों के आंसुओं को छुपाये हुए ,अपने दर्दों को सीने से लगाये हुए बस इस आस में जिंदगी गुजार देती है कि बेटा मेरा बड़ा आदमी बनेगा ,अपने अस्तित्व को पूरी तरह मिटा देती है , भला ऐसे उच्च विचारों को रखने वाली ,अपने असूलों आदर्शों पर चलने वाली स्त्री की मानसिकता छोटी ,अक्ल में पुरुषों के मुकाबिले में कम होती है, ये अक्स भला किस पैमाने पर नापी गई. इतना पढ़ाने लिखाने
और संस्कारों को बनाने में एक स्त्री ने अपना सर्वस्व कुर्बान किया पर ये महाराज लोग ऐसे अपने अहंग पर अड़े हैं और वही मनुवादी सोच.
कहीं ये बयानबाजियां लोकप्रिय होने का शॉर्टकट तो नही. जिन धार्मिक कट्टरपंथियों को खुदा का खौफ नही उससे न्याय की उम्मीद भी भला कैसे हो. घरों में अपने पाश्चात्य तहजीब को समेटे , मॉडर्न तकनीकी से परिपूर्ण ये लोग शायद दिमागी तौर पर भी आधुनिकता समेटे होते तो कुछ और बात होती.देश एक तरफ तो विज्ञान ,तकनीक और ना जाने कितनी ही स्टार पर तरक्की कर चला है पर स्त्रियों के मामले में वही दकियानूसी विचार! अपनी भावनाओं को क्या नाम डन समझ नही आता . सवाल फिर से वही _व्यक्ति देखा -देखी बहुत कुछ सीख जाता है पर मानसिकता को बदलने में सौ साल या उससे भी ज्यादा लग जाये ,ऐसा क्यों???
एक सवाल और _ एक स्त्री विधवा,परित्यक्तता और ना जाने ऐसे की विशेषणों को लेकर भी ता उम्र अकेले रह सकती है, अपने बच्चों का भरण-पोषण कर सकती है ,उसके लिए सोचने वाला शायद सिर्फ और सिर्फ उसके मां-बाप हों पर जब एक पुरुष इन हालातों में हो तो घर-परिवार और समाज भी उसका हमदर्द हो जाता है ,ऐसा क्यों????
आज जब कोर्ट में तीन तलाक के मसले पर बहस हो रही है तो क्या इस मसले पर भी दलील पुरुष वर्ग ही पेश करें.
और वह भी जब दलीलों में शर्मनाक बयानबाज़ी हो रही हो.
ये मसला हिन्दू और मुसलमानों का नही बल्कि सामाजिक मानसिकता है .ऐसी मानसिकता लेकर भला देश की तरक्की कैसे हो और समदृष्टि की भावना कैसे पनपे यह चिंता का विषय है.

अब जरा आप लोग ही समझाएं की कैसे #बेटीबचाओ' के पहल को सफल और साकार होते देखें.
@Ajha.12.05.17

Wednesday, 10 May 2017

कर्तव्य बोध

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Tuesday, 9 May 2017

Monday, 8 May 2017

माँ-बाप

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Saturday, 6 May 2017

हंसी

"हंसी"

तुम्हारी वो बातों का असर था
वो शोखियां , वो तबस्सुम और
फिर तेरा ये कहना कि चाँद जमीं
पर उतारूं भी तो कैसे
तुम्हें मैं चांदनी कहता हूं और फिर
खुद को चाँद समझता हूं
लो चाँद तुम्हारा जमीन पर उतर आया
फिर तेरा कहना_शहंशाह जो ना बन पाया
दुनिया तेरे कदमों पर लाऊं कैसे
तुम्हें बेगम बनाया अपना और खुद
शहंशाह बन बैठे
अब लो दुनिया कदमो में तेरे और मैं
हवाले तेरे
खुदा तलाश करता था बुतखाने ,काबा को
देखकर,ना हुई तलाश खत्म
तुझे खुदा अपना बनाया और काशी-काबा
दो जहां की मुहब्बत
तुम्ही से कर डाला , अब बताओ मेरी मंज़िल
आगे और है कहां तक !
इन्ही बातों की लब्बोलुबाब ऐसी थी
फिर कुछ न सूझी मुझे
जवाब में बस, मेरी
हंसी ऐसी निकली थी.
@Ajha.07.05.17

Saturday, 1 April 2017

Monday, 27 March 2017

Sunday, 26 March 2017

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Tuesday, 14 March 2017

Thursday, 9 March 2017

Wednesday, 8 March 2017

महिला दिवस

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# अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस #महिला और सपने #YQdidi Follow my writings on http://www.yourquote.in/aparna-jha-w03/quotes/ #yourquote

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Tuesday, 7 March 2017

मेरी कविता

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मैं और मैं

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Monday, 6 March 2017

#पुख़्ता

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Saturday, 4 March 2017

#पुख़्ता #एक बार

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दरिया

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Friday, 3 March 2017

फाल्गुन

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अंदाज़े बयां

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टूटता तारा

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Tuesday, 21 February 2017

आज से पहले..

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राजनीति

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Friday, 17 February 2017

समा

चले आते हैं कातिल भी दुनियाँ में
दोस्ती की रस्म निभाने को ,
तुम इश्क की शमा जलाये रखना .
@Ajha.18.01.17

मेरी सोच का सूर्य

मेरी सोच का सूर्य"
-----------------------
"शुभ संध्या रौशन भाई"
"अरे आप! कहाँ थे इतने दिनों तक...नवीनजी,शुभ संध्या आपको भी."☺
" आपका पार्क में आना,घंटो प्रकृति को निहारना और कैनवास पर उतारना, पूर्णतः प्रकृति एवं कैनवास को समर्पित आप और बालकनी से निहारती मैं आपको मैं आपको समर्पित हूँ। "नवीन जी ने रौशन जी से कहा

" इधर दो चार दिनों से देख रहा हूँ कि पार्क में आपके साथ ना ही कैनवास होता हैं ना ही तूलिका और ना ही प्रकृति को आप उस रूप में निहार रहे होते हैं।अजीब सी मायूसी हर वक्त मुझे आपकी सूरत में दिख पड़ती है ?"
" बिलकुल सही कह रहे हैं रौशन भाई , जब मैं रोजगार के कामों में उलझा रथा तब ना जाने कैसे मेरी तूलिका मेरा साथ देती थी.'सूर्य' जिससे मैं ताउम्र आकर्षित रहा,कितनी ही चित्रकारियाँ कर डाली , और खुद को हमेशा यही दिलासा देता रहा कि गृहस्थ जीवन से निवृत हो अपनी चित्रकारी पर सारा समय दूंगा. 'सूर्य' को तूलिका की परवाज़ दूंगा,इंद्रधनुषी रंग दूंगा ,इसके तेज़ में चार चांद लगाऊंगा।
पर आज, मेरी सोच को ना जाने क्या हो गया ! ना जाने मुझे ऐसा क्यों लग रहा की सूर्य अब बूढा हो गया है.
इधर कई दिनों से मेरे दिमाग और दिल में एक युद्ध सा छिड़ गया हैं ।दिमाग कहता है सूर्य अब बूढा हो गया है और दिल इस बात को मानने को तैयार नहीं.मैं ने भी अभी हार नहीं मानी और अपने दिल की ही सुन रहा हूँ.बस बूढ़े सूर्य को जवां करने की सोच खुद में ला रहा हूँ और प्रण भी यही लिया है कि तभी अपने तूलिका और कैनवास को हाथ लगाऊंगा."
आज मैं भी उसी पार्क में रौनक जी के समीप बैठी उनकी बातें सुन रही थी.सोच रही थी की काश रौनक जी को अपने अक्स की तलाश मिल जाय ,ताकि फिर से उनका मन अस्ताचलगामी सूर्य में उसकी सुंदरता देखे ना की बूढा होता हुआ.

@Ajha.10.02.17

तुम्ही तो है

"तुम्ही तो हो......"

तुमसे मिलना जीवन मिलना
तुम ही मेरे जीवन का आधार सखि

जीवन देखा ,प्यार मिला ,है तुझ पर
मेरा अधिकार ,तुम्ही मेरा घर-बार सखि

मेरे नैना ,कैसे नैना स्वप्न तुम्हारे ही देखे हैं
नैनो की तुम ज्योति, तुम्ही मेरा संसार सखि

सोच तेरी मन में मेरे शीतल जल सा,अमृत
जल सा,मैं नदिया तूँ है मेरा धार सखि

धूप है तीखी झुलस रहा सर्वस्व,तेरा होना
छाँव वृक्ष की और उसके पर प्रहार सखि

तुफानो में डूब रही थी  मेरी नैया,ले हाथों
में पतवार, तुम्ही तो थे मेरे खेवनहार सखि

माया मोह है दुनिया,ठगों से भरी पड़ी
झंझावातों से भरे मन का तुम्ही तो सरकार सखि

मेरी आदत तेरी आदत मुझको है स्वीकार
तूँ ही तो हो मेरा अलंकार सखि

ख्वाब मेरे तुम ,चाह मेरे तुम ,तुम से है सरोकार
बसे हुए हो मन में मेरे ,जीवन का है तूँ सार सखि.
@Ajha.10.02.17
©अपर्णा झा.

My love

Maiden effort in english poetry writing😊😊😊

"My Love"
-----------------
Love is in the air
can feel it here and
there

what an atmospheric sphere!
green woods and the morning air

Sun rise , the temple bells, chirping of birds ,are
like celebrations everywhere

mustered flowers in the fields
expressing the welcome of the season spring

whispering of cool morning air
defines how much do you care

morning dews small like infinitum
I can measure  your love even in that horizon

the high mountains standing in
one position
shows your determination

the sound of water falls,expressing your love all in all

I know the way you love,your unending expectations,insecurities and the fear

Sometimes make me puzzled
Sometimes l get disheartened

Trying to win your love
Some times l feel depressed

But you have qualities which inspires motivate me
to love you again and again

Your presence, your patience,
Your  art of love
O God ! Here l am, here I am

You have gifted me, my love
As a loving, lucky mascot.
@Ajha.13.02.17
©Aparna Jha.

खुश रहने का सबब

खुश रहने का सबब था
चाँद तारों को निहारना
वो बागों की खुशबू ए गुल में
तुझे ही तलाशना
रंगे हिना प्यारी थी बहुत
कोयल की कूक में
तेरी सदाओं को सोचना
हलकी सी जो हवाओं का झोंका हुआ
कंपन हुई ,एक अनजान सा डर
एक आहट, क्यों हुआ ये दिल आहत
बहुत मुश्किल से गुजरी है रात
यारब
चुपके से किसी ने
ज़माने की बात कर दी
है फिर से.
@Ajha.16.02.17

हौंसला तेरी याद का

रेत का महल
दरो-दीवार भी जर-जर
धूप भी तेज राहों पर
काली स्याह रात
शीशे का दिल लिए
शम्मा की लौ को हैं यूँ सम्भाले हुए
ताबीर की जो मजबूती है
ना ढहेगा कभी
ना टूटेगा कभी
ना बुझेगा ही
ज़माने की नज़र है,पर
इक हौंसला है और तेरी ही
इबादत में दिन गुज़रा है
या खुदा ! तेरा ही करम
तेरा ही करम.
@Ajha.17.02.17
©अपर्णा झा.

गोदना(टैटू)

"गोदना (tattoo)"

"माँ अब ये क्या?"
"ये गोदना है बेटे. अब तुम्हारी शादी हो गई है,आज तुम्हारी बाहों पर  गोदना गोदाने का रस्म निभाया जाएगा."
"ये कैसा रस्म माँ ???"
"अव्वल तो इस बूढ़े गरीब से मेरा विवाह कर दिया और अब ये दर्द भी मुझे ही सहना होगा.
क्यों माँ क्यों ???"
"बेटा हम कबीलाई लोग हैं , हमारा ना कोई ठौर ना ठिकाना. अब तक तुम्हारी रक्षा हमारी जिम्मेदारी थी अब तुम ससुराल की हो गई.तुम्हारा परिचय तुम्हारे पति का नाम और पता , तुम्हारी बाहों पर होगा.  यही गोदना अब  तुम्हारी पहचान होगी."
तभी "अंजू दीदी" समाज कल्याण मंत्रालय द्वारा नियुक्त समाज सेविका का यहां आगमन हुआ. सारी बातें उसने सुन ली थी ,बोलने पड़ी_
"क्या मासी कब तक बच्चों को अपने सा ही जीवन जीने को विवश करोगी! माना परेशानियां बहुत हैं पर सरकार द्वारा आप लोगों के विकास की जो योजनाएं चल रहीं हैं ,कम से कम उसका तो हिस्सा बनो. माना सारी  सीढियां एक बार में चढ़ी नहीं जा सकती.पर कम से कम अपने से दो सीढियां अधिक भी तो इन बच्चों को अपने जीवन में चढ़ने दो. कुछ तो अक्षर ज्ञान हो. इनकी बाहों पर क्या गोदा गया है वो भी तो कम से कम ये पढ़ लें."
"रहने दो अंजू दीदी ,ये बातें  माँ की समझ से बाहर है.पर हाँ, मैं प्रण लेती हूँ कि अपने बच्चों को इतना साक्षर तो करुँगी ताकि इन्हें  गोदना के सहारे की जरुरत नहीं पड़े."
@Ajha.17.02.17
©अपर्णा झा.

रिश्तों की मृगतृषणा

चाहतों की एक अनंत सूची
जहां सिर्फ अपेक्षाएं हीं
जो रूप लेलें महत्वाकांक्षाओं की
एक खतरनाक डगर चल निकले
जहां सोच और दृष्टिकोण एकपक्षीय हों
जीवन से सिर्फ शिकायतें
मन बेचैन ,सुनसान राहों पर भटक रहे
कहाँ रहता फिर सुख शांति जीवन में
हर स्थान ,हर रास्ता,हर इंसान
वक्त सभी तो झूठे से दिखने लगते हैं
हरदम हरपल एक अनजाना सा डर
साथ छूटने का, दर्द
रिश्ते टूटने का 
सताता हैं
क्षण भंगुर जीवन
रेल की पटरियों जैसी अनंत
लगने लगती है
हर मौसम दगा बाज़
ठगी और फरेबी का
चोली -दामन का साथ लगता है
किस्मत  हरदम उदास दिखती है
यकीनन सब है इक धोखा
बस इंतिज़ार रहे इन तूफानों
के गुज़र जाने का
क्षण भर का सब खेला है
इक परत पड़ी जो धूल की
कुछ पल ही धुंधला है
होश जो खोया मन ने
फिर लौट के आना ही है
फिर जो सोचो _
क्या तेरा और क्या मेरा
इसी सोच में गुज़रे दिन
तैयारी अब उस पार की
ये तो बस चार दिनों का
मेला है.
@ Ajha . 17. 02. 16
©अपर्णा झा