बस यूँ ही,
" एक ख़याल ऐसा भी"
(बारिश के बहाने)
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यूँ तो बारिश ने खूब उधम मचाई आज
हम तो यूँ ही थे रहे जश्न मना
दूर किसी के आह की हुई सदा
पता हुआ पडोस के घर उनके
अपने का चौथी का अरदास हो रहा
ऐ जिंदगी ये तेरी कैसी पहेली !
एक ही वक्त किसी को फूल किसी को कांटे दे दी
रास आता नहीं तुझे इक संग सबों का खुश होना
एक ही वक्त किसी की मुहब्बत किसी का ग़म हो ली
दूर तलक नज़र गई लोग ही लोग नज़र आये
एक ही वक्त किसी के लिए भीड़ किसी के लिए तन्हाई थी
अमन ओ चैन क्यों नहीं रास आती तुझे ऐ जिंदगी!
एक ही वक्त किसी को अमीरी तो किसी को गुलामी दे दी
वक्त का ये सितम कैसा
क़त्ल ओ ग़ारत से जलाई जो शमा
एक ही वक्त कहीं रौशनी कहीं अंधियारा भर दी
दरसे-पाकीज़गी जो पढ़ाया होता एक जैसा
एक ही वक्त किसी को जन्नत किसी को दोझख ना मिली होती
ऐ बारिश अब के झूम के इतना तूँ बरस
भीग जाए हर कोई
धूल जाए हर के ऊपर और नीचे का हिसाब
बस जमी रहे खुशियों की महफ़िल
और जन्नत से खुदा जोर से ये आवाज़ लगाए
हुज़ूर ज़रा हम पर भी तो गौर फरमाएं.
@Ajha.31.08.16
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