"खिड़कियों को तलाशती जिंदगी"
सुनते आए थे
जीवन के आखिरी पलों तक
इंसान अपना वजूद तलाशता
आगे-पीछे की दौड़ में खुद को आंकता
शायद माटी, दरो-दीवार भी उसे पुकारती
सुनते आए थे
यादों की लकीर बहुत हल्की होती है
पर नहीं,समय के साथ और
गहराती है,उन यादों की लकीरों को
है पहचानता,
जिसे इंसान जीवन पर्यन्त है तलाशता
सुनते आए हैं
जन्म और मृत्यु के मध्य कितनी ही
खिड़कियां, और एक चक्र
आजीवन बंद होने और खुलने का
याद रहती हैं ये खिड़कियां
मन के एक कोने में खोल रखा है
सुनते आए हैं
हवाओं का रुख ये खिड़कियां
पहचान लेती हैं
और बचा लेती ही अनहोनियों से
आंधियों में बंद होने को आतुर
और परवाज़ के लिए खुला आसमान दिखाती है
खिड़कियों को गौर से देखो
इंसानो की ये फितरत बताती है
माना घर के लिए चार दीवार जरूरी है
पर खिड़कियां बंद रखी जाएं
ये कोई मजबूरी तो नहीं है.
उठो ,जागो
सूर्य की किरणें ,शीतल हवाएं
दस्तक दे रही खिड़कियों पे
खोलो पट्ट जरा तो झांको
ये भोर कुछ कह रही है.
अपर्णा झा
04.08.17
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