"भविष्य निर्माण"
मेरी कुछ आदतें जो मेरे बेटे और पतिदेव को बिल्कुल पसंद नहीं, पर आदतन मैं ऐसा करती हूं.मुझे ऐसे में कभी कभी उनसे 'जाहिल-गंवार' के विशेषण भी सुनने पड़ जाते हैं.रास्ते चलते हुए आंख-कान को हर जगह दौड़ाते रहती हूं कि शायद कुछ बातें मुझ से छूट ना जाएं... और कोई अलग सी बात लगी तो वहां रुक कर उसे पूरी तरह से समझना चाहती हूं,जबतक कि वस्तुस्थिति पूरी तरह से समझ में ना आ जाय.
ऐसा ही एक वाकया रहा जब हाल ही में मैं अमृतसर गई थी.शाम का समय, स्वर्ण मंदिर के बाहरी परिसर में चलते हुए....पता नहीं ये इलाका पहले कैसा था पर आज सुंदर-सुंदर गार्डेन चेयर और एक खास ऊंचाई पर पूरे रास्ते लैम्पपोस्ट. कल्पना लोक में विचरने के लिये और क्या चाहिये..
चलते-चलते मेरी नज़र,एक कुर्सी पर कुछ less privileged class के बच्चे आपस में बड़े जोशो-खरोश में बातें कर रहे थे,उनपर पड़ी.मैं उनके बात करने के तरीकों से आकर्षित हो जिज्ञासावश उनमें शामिल हो गई.मेरी ओर बच्चे देख मुस्कुराने लगे.पूछा क्या बातें हो रहीं हैं...!सभी बच्चे एक साथ बोल पड़े...कल रात इसके पापा ने बहुत पी ली थी तो इसके पापा ने बड़ी पिटाई की...तबतक दूसरा कहने लगा..."आँटी नहीं ऐसे हुआ...और फिर तीसरा अपने बात...."
मतलब ये कि इन बच्चों को भी पता था कि दारू के नशे में की गई मार-पीट गंभीरता से नहीं ली जाती और उसका असर ना उनके बच्चों की दोस्ती पर होता है और ना पियक्कड़ों की दोस्ती पर...हाँ, थोड़ी देर के लिए झुग्गी परिसर में मौज-मस्ती आ जाती है...बस जो असर होता है वह उनकी माँ-बहनों पर जो एक तरफ उस व्यक्ति की जान बचाना चाहते हैं और दूसरी तरफ अपनी शर्मिंदगी को पर्दे में छुपाने का नित्य ही एक अथक प्रयास करते रहते हैं...
मैं हैरान इस बात से हुए जा रही थी कि
हम सोचते हैं बड़ों में ही परिपक्वता होती है...संवेदनाओं का भान भी बड़े होकर ही आता है ....बच्चे तो बच्चे हैं,आज सुने, कल भूल जाएंगे.पर,मुझे लगा कि मैं बिल्कुल गलत हूँ.हर उम्र के लोग अपनी तरह के लोग ढूंढ अपना समूह बना ही लेते हैं,जहां वे अपनी भावनाओं के उद्गार व्यक्त करते हैं,चर्चाएं करते हैं, समान परिस्थियों में आई विषमताओं को तुलनात्मकता के आधार पर सोच खुद को वर्तमान और भविष्य हेतु तैयार होने की नींव अपने बचपन में ही जमा लेते हैं.
और एक हम बड़े लोग इस सोच में बैठे होते हैं कि उनके बच्चों के भविष्य का निर्णय उन्हें ही लेना है,डॉक्टर-इंजीनयर बना कर...
क्या ये विडम्बना नहीं तो और और क्या है...!!!
अपर्णा झा
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