Tuesday, 14 August 2018

शख्सियत

"शख्शियत"
यूँही गुज़रे रविवार की शाम हम दोनों पति-पत्नी बैठकखाने में बैठे,गप्प-शप्प में लगे थे... अचानक ही टीवी पर चल रहे  साक्षात्कार पर नज़र गई.आजतक पर 'सीधी बात' में  श्वेता सिंहजी की बातें डॉ फ़ारुख अब्दुल्लाह साहब से हो रही थी.हम दोनों फ़ारुख साहब के जवाबों से हैरान हुए जा रहे थे कि आज गर्म जोशी में ऐसी नरमी तो देखी ही नहीं थी.तर्क तो सुभानअल्लाह...दिलखुश कर दिया.हद तो तब हुई जब उनसे मौजूदा प्रधान मंत्री के बारे में राय देने को कहा.फ़ारुख साहब बड़े अदब से कहने लगे कि "कोई भी प्रधानमंत्री बुरे नहीं होते और कभी भी देश और नागरिक का बुरा नहीं सोचते हैं.जो भी फैसले एक प्रधान मंत्री लेता है वह उसके बर्तमान के परिस्थितियों को देखते हुए देश और लोगों के हक़ में लेते हैं.अभी के प्रधानमंत्री भी वही कर रहे हैं,ये बात दीगर है कि उनके फैसलों में कौन साथ है या नहीं...क्या इस बात की उनकी तारीफ़ ना हो जो अपने प्रधान मंत्री होने के साथ लाल किले से अपने पहले भाषण में शौचालयों की बात करे, बड़े हिम्मत की बात है...पर सच्चाई तो यही,यह तथ्य तो है ही,लोगों के जनजीवन से जुड़ा अहम मसला तो है ,पर कितने प्रधान मंत्रियों ने इसे इस प्रकार से कहने की हिम्मत की....!
ये साक्षात्कार समाप्त हुआ तो उंगलियां रिमोट के बटन को फेरते रजत शर्मा के आपकी अदालत तक ले गई.हालांकि वहां रिपीट प्रोग्राम ही दिखाया जा रहा था पर हमारे लिये वह पहली बार था.आज के पाकिस्तान के भावी प्रधान मंत्री और हमारे लिये पूर्व क्रिकेटर इमरान खान अपने दलीलों पर सफाई पेश कर रहे थे.वो भारत-पाकिस्तान के क्रिकेटी संबंधों पर प्रकाश डालते रहे.बातों-बातों में यह भी बताना ना भूले कि कैसे भारत से हारने पर घर वापसी पर सज़ा उनके एयरपोर्ट पे तैनात लोग ही देना शुरु करते.और जीत हुई तो वही लोग जश्न का अंबार सजा देते.
पर एक बात पक्की कि पाकिस्तानी नागरिक भारतीयों को बहुत ही प्यार और एहतराम देते हैं.जब भी पाकिस्तान के मैदान पर हिंदुस्तान के संग मैच हो, तो पाकिस्तानी की खुशी,उनका भारतीयों के स्वागत में गर्मजोशी,तो दस्तरख्वान बिछाने में या जुबाँ से कोई ऐसी बात ना निकले की नाराजगी का सबब बन जाये...(थोड़े मज़ाक के अंदाज़ में बोले कि ये बात और है कि हमें इसकदर गर्मजोश मेहमानी का पता ना था कि हमारे खिलाड़ी खेल को बुरी तरह से हार जाएंगे)...पूर्व में कही सच्चाई आज वहां के चुनाव परिणाम  ने साबित कर दिखाया.
ये दो साक्षात्कार ऐसे थे कि हमलोग यही सोच रहे थे कि आदमी चाहे कोई हो...बड़ा हो या छोटा,अमीर हो चाहे गरीब, नेता हो या अर्दली...हर किसी के दो पहलू होते हैं_अच्छे और बुरे...और परिस्थितियों के अनुसार ये दोनों पहलू समय समय पर बदलते रहते हैं.वरना ये जो दो साक्षात्कार देते हुए इंसानों को,जो कि लोगों के बीच आग उगलते रहते हैं, आज अकेले में कैसे इतना तर्कपूर्ण बातें करते देख रहें हैं हम...!
काश कि देश की जनता ने इनके साक्षत्कार पर भी कुछ गौर फरमाया होता.
ऐसे में मुझे याद आता है मुंशी प्रेमचंद जी की वो कहानी 'पंच परमेश्वर'.
सच ही तो कहा था कि न्याय की कुर्सी पर बैठ गलत सोचा ही नही जा सकता,शायद उस इंटरव्यू के दौरान ये दोनों ही व्यक्ति अपनी उस शख्सियत को जी रहे थे जिन्हें कि रोजगार के ग़म ने इन्हें कहीं इनसे दूर कर दिया था.
तब की कही बातें आज भी कितनी सटीक मालूम होतीं हैं.मुंशी प्रेमचंद को उनके 'पंच परमेश्वर' से यादकर उनके जन्मदिन को मनाएं.नमन.
अपर्णा झा

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