पस्त नहीं कहना इसे
चिंतन में कहीं विलीन है
शायद शारदे मां के दरबार में
ज्ञान वाचन में तल्लीन है
क्यों परेशान कर रहे इस बच्चे को
याद नहीं खुद की
किताबों पर रख माथे सोया करते थे
और बहाने भी कैसे कैसे...
इसी तरह से सबक हम अपनी
नींद में भी याद करते थे
कहते थे माता सरस्वती नींद में
आएंगी
उलझे सवालों को सुलझाकर जाएंगी
सच ही तो था...
कहां था इतनी पढ़ाई का बोझ
भविष्य संवारने की कहां थी तब
माँ की गोद से ही इतनी होड़
क्यों नहीं अपने ही
इन किस्सों को
अपने बच्चों को सुना नहीं पाते
कैह भविष्य को नाग ये भीषण
भ्रम के इन नागों से डराते हैं
क्यों आखिर क्यों
भविष्य का सुनहरा सपना दिखा
किताबों से डराते हैं
अपने ही बच्चों के लिये क्यों
आखिर क्यों राक्षस बन जाते हैं
आगे क्या होगा....
नाग डसेगा या राक्षस निगलेगा या
भविष्य सुनहरा होगा
सच तो यह है कि वर्तमान ही
नाग बना है,राक्षस बन
निगलने की धमकी देता है
बस करो अब ये खतरनाक खेल
ये तो है बचपन सँग बेमेल
सो जाने दो अभी थोड़ा
खो जाने दो मीठे सपनो में जरा
कि विद्यादात्री आएंगी
माथे पर हाथ फेर कर जाएंगी
और कहेंगी...
बेटा ये तेरे खाने-खेलने के
दिन हैं
स्वस्थ और खुश हाल रहे तूँ
पढ़ाई भी हो जाएगी
भविष्य भी संवर जाएगा
ना बोझ बन,ना खुद को बोझ समझ
खुश रह,स्वस्थ रह
आबाद रह
मां तेरी तूझको यह
आशीष देती है,
यह आशीष देती है.
अपर्णा झा
Tuesday, 14 August 2018
बचपन बेमेल
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