कुछ यूंही,हल्की-फुल्की सी...
दोस्तों की बातें
सोहबतों के किस्से
कुछ ऐसे ऐसे
चुपचाप बिस्तर में लेटे
यादों में खोई
बातों में खोई
करवट बदल बदल
पूरी रात यूँ ऐसे मैं सोई
मुस्कुराती,
गुनगुनाती
रूठती,मनाती
ना जाने कैसे-कैसे ख्वाबों को
मैं बुन जाती
सिलसिला गुफ्तगू का
तुझ से मुसलसल चलता रहा
ना कोई फर्क पड़ा
तेरे आने से पहले
तेरे जाने के बाद
अपर्णा झा
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