ये घटा ,
ये छटा ,
ये लाली
उसके पीछे हरियाली
मदमाती , लहराती
छेड़े अपने आने की तान
ये है झरने की गान .
मानो , अपने प्रियतम को ढूँढती ,
मंजिल को चूमती ,
आ पहुँची है मक़ाम तक .
Wednesday, 28 October 2015
झरना
Tuesday, 20 October 2015
सहारा
ना करो दफन ,
ना चढ़ाओ कफ़न कि
वो इंसान अभी जिंदा है ,
रूह अभी बाकी है .
करना है तो बस इतना कर _
ना सता , ना जुल्म कर ,
अभी उसे तेरे सहारे की ज़रूरत है ,
प्यार कर , प्यार कर .
बस थोड़ा सा और ऐतबार कर .
Monday, 19 October 2015
Album series : 10
सुप्रभात
लाली मेरे लाल की , जित देखूं उत लाल .
लाली देखन मैं गई , मैं भी हो गयी लाल .
चित्रण : आदरणीय मीनाजी के wall से .
रिश्तों की चरम बिंदु
शायद इससे सच्चा रिश्ता कुछ नहीँ .
तुम मैं हूँ ,
मैं तुम हो .
तुम हो तो मैं हूँ ,
और नहीँ
बस कुछ भी नहीँ .
कायनात भी हम से - तुम से है .
हम नहीँ - तुम नहीँ
तो कुछ भी नहीँ .
पर ये जाने कौन , माने कौन ?
यही सत्य है ,
यही शाश्वत है ,
फ़िर ये दुनियाँ क्या
और मोह - माया क्यों ?
: : : : : : : : : : : : : : : : :
सम्बन्धक सत्यता के चरम बिंदु .
अहाँ, हम छी ,
हम अहाँ छी .
अहाँ छी ता हम छी ,
नहीँ ता किछ नहीँ .
ई संसार , हमरा- अहाँ सा अछि .
हम नहि ता अहाँ नहीँ
तैँ ई कायनात नहि ,
ता अस्तित्व कहाँ .
अहि के जानय के ,
आ मानय के ?
यहा सत्य अछि ,
सनातन अछि .
फेर ई दुनियाँ की , आ
मोह - माया किया ?
Sunday, 18 October 2015
Album : 8
ये कौन सी जगह है जहाँ की आप सैर करा रहीं हैं _ जन्नत या परियों के देश ! इस सैर के आनँद से मन खुद - ब - खुद बोल पड़ा " सुप्रभात "
Album series : 7
ohre taal mile nadi ke jal se ,nadi mile saagar se, saagar mile kaun se jal se _ good evening with a thought.
Album series : 6
बुद्धम शरणम गछामि , धम्मम शरणं गछामि . संघम शरणम . . . . अभी थोड़ा टाइम लगेगा . पहले घर की जिम्मेदारियां पूरी कर लूँ . सुप्रभात .
Album series : 2
ऐ ग़मे - ज़िंदगी कुछ तो कर फ़ैसला ,
एक तरफ़ है गुस्सा तेरा , एक तरफ़ ये अदा .
सुप्रभात .
चित्रण आदरणीय मीना कर्णजी के wall से .
Wednesday, 7 October 2015
सुप्रभात
नई आशा , मान - सम्मान लिये ,
जाग उठा इंसान .
फ़िर जहाज से तुझे ,
अलग हो जाना होगा
और ,
'जहाज का पंछी '
साँझ पड़े ,
फ़िर जहाज में आना होगा .
__ _ _ _ इसी आशा के साथ सुप्रभात .
Tuesday, 6 October 2015
एहतराम दोस्ती का
इतना एहतराम ,
इतनी जर्रानवाजिशें ,
कि दोस्तों की खातिर
खुद को सरेआम कर दिया .
ये दुनियाँ अब वो जगह तो नहीँ ,
कि जहाँ वादों को पूरा करने का
इंतजाम कर दिया ,
सब कुछ दोस्त के नाम कर दिया .
" भूल जाऊँ दोस्तों को ,
ऐसा हो नहीँ सकता " ,
ऐसा कह कर भी खुद को
तसस्ली दे पाओगे क्या ?
जहाँ दोस्तों में भी तुमने _
अच्छे , बुरे , खरे , खोटे का
नाम देकर अंजाम दे दिया .
फ़िर बताओ_
कैसे लिखोगे ग़ज़ल और नज्में
दोस्तों पर ,
जिन्हें विशेषणों का ईनाम दे दिया .
_ _ _ _ Aparna Jha
लर्निन्ग , अर्निन्ग और रिटर्निंग
" लर्निग , अर्निग , रिटर्निंग "
आप भी सोच रहे होंगे कि ये क्या ! शीर्षक अंग्रेजी में और विचार हिन्दी में ? हुआ यूँ कि इन दिनों इसी सोच में पड़ी थी कि आखिर समाज को कौन सा घुन लग गया जिसमें रोटी , कपड़ा, मकान से अलग आस्तित्व की लड़ाई ने मशरूम की तरह फैलना शुरू कर दिया है . सरदार पूर्ण सिंह जी (अगर लेखक का नाम गलत लिया हो तो कृपया सुधारें )का लेख " गेहूँ और गुलाब " जिसे मैं ने 8वीं कक्षा के सिलेबस में पढ़ा था , अब उसके मायने समझ में आ रहे हैं . मुझे इसकी अभिव्यक्ति में कठिनाई हो रही थी . आज जब प्रात: दैनिक भास्कर के पन्ने उलट रही थी तो मुझे अपने सोच की अभिव्यक्ति_ आत्मबोध कराने वाले विश्वख्याति प्राप्त , आध्यात्मिक गुरु महात्रया रा के शब्दों में मिला . उनका मानना है कि जो अभी 30से 40 की उम्र के हैं , उनसे देश बदलने की उम्मीद करना गलत होगा . क्योंकि इन्हें हमारे शिक्षा प्रणाली ने अलग सोच के साथ तैयार किया है . इसमें कम्पीटीशन है . नाकामयाब होने का दुःख है . पैसा कमाने की इच्छा है . हमें नई पीढी पर ध्यान देना होगा . छोटे- छोटे बच्चों को लर्निग , अर्निग और रिटर्निंग की शिक्षा देनी होगी ताकि वे खूब सीखें, खूब कमायें और फ़िर उस कमाई को समाज में लगायें. और ये कार्य अकेले शिक्षा जगत ही नहीँ अपितु पूरे सामाजिक माहौल को सकारात्मक सोच में परिवर्तित होना पड़ेगा तभी हम स्वस्थ समाज की कल्पना कर सकते हैं
धर्म
कहते हैं हिंसा का कोई धर्म नहीँ होता . मेरा भी यही मानना है .
जिसका आगाज हो मजबूरी ,
अनेकों हो उसपे तौहमते - इलज़ाम ,
और अंजाम हो इंतकाम ,
फ़िर उसके लिये _
क्या होना हिंदू और
क्या होना मुसलमान .
_ _ _ _ _ Aparna Jha
तौबा
मुझे ऐसा लगता है कि किसी निष्कर्ष पर पहुँचने में जल्दी- बाजी नहीँ करनी चाहिये और एक बार निष्कर्ष पर पहुँच गये तो उसपर कायम रहना चाहिये .
_ _ _' तौबा - तौबा '
क्यों किया अपना ये हाल ,
तौबा - तौबा .
कैसे कर लिया इकरार ये ,
तौबा - तौबा .
हो गये इश्क में इनकार ,
तौबा - तौबा .
अरे ज़रा देख तो लेते
ज़माने की चाल तौबा .
फ़िर तो ना होता ये हाल
तौबा - तौबा .
किस बात की है रन्जिशें,
किस बात से है तौबा ,
क़दम पहले ही रखते सम्भल के ,
तो ना करनी पड़ती आज ,
हर बात पे तौबा - तौबा .
मृग मरीचीका
"मृग मरीचिका"
-------------------------------------------------------
भगवानक पूजा कs रहल हर इंसान
मजबूर हाल में जी रहल इंसान
कहs लेल तs सुलझल छै इंसान
मुदा अपने उलझन में उल्हल छै इंसान .
इ केहन चलन
पूजा के, अराधना के
पाथरक मुरूत के खूब
सुमरि रहल इंसान
बिसरी गेल पूजनाय मनुख के इंसान
संतानक आशा में,
परिवारक शुभेच्छा में
खूब सुमिरल गेल भगवान
खुशियो बुझलक पर्वेतिहार में
मुदा नित्य मनुखक सेबा
केनाय बिसरल इंसान
किया उत्पत्ति केलहुँ मृग के
तै भेल मृग मरीचिका के कल्पना
ताहि पाछू भागी रहल सब इंसान
आ भागि रहल दुनिया
----------------------------------------------------------------
--Aparna Jha
शब्द
जब से शब्द बने मीत मेरे
सफल हुई मेरी साधना
ये शब्दों से मेरी आराधना
हैं मेरे साहित्य की रचयिता
ये मेरे मीत भी
जीवन संगीत भी
मन की आवाज़ ये
अंतर्द्वंद का आभास भी
ये तत्व बोध भी मेरे
संवाद और संवाहक तुम तक
ये मेरे
ख़ुशी भी जता लेते हैं
मेरी पीड़ा को अंतस से बाहर
निकाल देते हैं
तन्हाइयों के संगी
आये जो सामने जो तुम कभी
बावरा मन को मेरे समझाये यही
और मेरे प्रेम को
तुम पर जताये भी यही
ये शब्द नही सरस्वती का अवतार है
जीवन को मेरे मिला
ये प्रभु से वरदान है
कर्तव्य यही मेरा हमेशा
बहुत सहेजना
संभालन भी होगा
अधिकार को अपने
बताना भी होगा
समाज निर्माण की जो बात हो
तो शब्द को ढाल बनाना होगा
जो काम ना कर पाए जहां तलवार
संपूर्ण व समग्र होती हैं शब्दों के वार.
@Ajha.16.03.17
शब्द
जहिया से शब्द बनल मीत अहाँ के ,
सफल भेल अहाँ के साधना ,
ई शब्दक अराधना .
भेल शब्द सँ संरचना ,
आ भेटल ताहि से अहाँ के
चित्र , मित्र आ गीतक रचना .
_ _ _ _ _ Aparna Jha
ई चित्र web images स लेल गेल अछि .
रिश्ते
हसरतों की चाह में कहीँ इंसानी रिश्ते ना हाथ से फिसल जायें . सुप्रभात .
" हसरत "
मजबूरियां रही होंगी ,
यूँही कोई बेवफा नहीँ होता .
हसरतों के आइने में पता
बदलने की बात करते हो तो ,
ऐ मेरे दोस्त,
बात ये तू याद रख ,
जन्म से मरण तक इंसान कभी
एक पते पे नहीँ होता .
कभी बचपन में , कभी जवानी में तो
कभी बुढ़ापा .
कभी माँ- बाप से जुड़कर तो
कभी माँ- बाप होकर .
कभी सहारा ले कर तो
कभी सहारा देकर .
आसाँ नहीँ है ज़िंदगी की कहानी ,
पता ढूँढ़ने की तू कभी कोशिश ना कर .
_ _ _ _ _ _ _ _ Aparna Jha
Image from web image .
सेविका (Nurses )
अगर देखा जाय तो हर एक घटना या दुर्घटना आपको कुछ सबक देके जाती है . मैं viral fever की वजह से थोड़ी कमज़ोर सी हो गयी . पड़ोसी हमारे चूँकि एमर्जेन्सी icu के dr हैं तो उन्होंने मुझे अपने observation में एमर्जेन्सी icu में डाल दिया . दो दिनों तक जिस भयानक ज़िंदगी से दो - चार हुई , (वैसे ही dr. और दवा से कोसों दूर रहती हूँ )वो मुझे कभी भी नहीँ भूलेगा . ऐसा लग रहा था मानो मौत का मैं तांडव देख रही थी . घरवाले भी ऐसे लग रहे थे जैसे मानो इसी बात का इंतजार कर रहे हों जैसे उनके ऊपर जाने का ही इंतज़ार हो रहा हो . पर इन सब के बीच जो जिन्दादिलि की मिसाल देखी वो थी वहाँ के nurse वर्ग की तीमारदारी . ऐसे - ऐसे विकट मरीजों की प्यार से साफ़- सफाई रखना , प्यार से खाना खिलाना और उनसे उन्हीं की तरह बातें करना . सच में बहुत हैरान थी कि जिनके बीच मैं रहकर अपने ज़िंदगी की कामना कर रही थी , इन sisters का तो 365 दिन ऐसे ही गुजरता है , जरूरत है तो सेवा करने के जज्बे की. Sisters fraternity के जज्बे को सलाम करने के अलावा मेरे पास और कोई शब्द नहीँ , बस इतना ही कि , 'जाको राखे साइयाँ , मार सके ना कोय '.
long live sisters . salute to you all .
सेविका (Nurses )
अगर देखा जाय तो हर एक घटना या दुर्घटना आपको कुछ सबक देके जाती है . मैं viral fever की वजह से थोड़ी कमज़ोर सी हो गयी . पड़ोसी हमारे चूँकि एमर्जेन्सी icu के dr हैं तो उन्होंने मुझे अपने observation में एमर्जेन्सी icu में डाल दिया . दो दिनों तक जिस भयानक ज़िंदगी से दो - चार हुई , (वैसे ही dr. और दवा से कोसों दूर रहती हूँ )वो मुझे कभी भी नहीँ भूलेगा . ऐसा लग रहा था मानो मौत का मैं तांडव देख रही थी . घरवाले भी ऐसे लग रहे थे जैसे मानो इसी बात का इंतजार कर रहे हों जैसे उनके ऊपर जाने का ही इंतज़ार हो रहा हो . पर इन सब के बीच जो जिन्दादिलि की मिसाल देखी वो थी वहाँ के nurse वर्ग की तीमारदारी . ऐसे - ऐसे विकट मरीजों की प्यार से साफ़- सफाई रखना , प्यार से खाना खिलाना और उनसे उन्हीं की तरह बातें करना . सच में बहुत हैरान थी कि जिनके बीच मैं रहकर अपने ज़िंदगी की कामना कर रही थी , इन sisters का तो 365 दिन ऐसे ही गुजरता है , जरूरत है तो सेवा करने के जज्बे की. Sisters fraternity के जज्बे को सलाम करने के अलावा मेरे पास और कोई शब्द नहीँ , बस इतना ही कि , 'जाको राखे साइयाँ , मार सके ना कोय '.
long live sisters . salute to you all .
डॉ. कादम्बिनी गांगुली
की अपने सब अहि महिला के चिन्हैय छियैन्ह ?
ई छथि डा. कादम्बिनी गांगुली, जिन्कर जन्म 18 जुलाई , 1861ई . में भागलपुर में भेलन्हि आ पहिल दूटा भारतीय महिला ग्रेजुयेट में हिन्कर नाम छैन्ह . हिन्का British Raj में भारतीय महिला चिकित्सक , जिनका 1886ई . में चिकित्सा शास्त्र में ग्रेजुयेट होई वाली पहिल भारतीय महिला(gynecologist ) के गर्व प्राप्त छलैन्ह आ संगे पूरा दक्षिण एशिया महादेश के पहिल महिला सेहो छलि जे कि पश्चिमी चिकित्सा पद्धति में डिग्री हासिल केने छलि . ओना ता ओ बहुतोरास डिग्री अमेरिकी देश से चिकित्सा में लs नेने छलि, चाहती ता बहुत आगु तक जैतैथ . मुदा अपन पति से प्रभावित अपना के आजादी आंदोलन में समर्पित कs देलि . 1889ई . में Indian National Congress ke 6टा महिला प्रतिनिधि में से इहो छलि . नारी उन्मुक्तिकरण में हिन्कर योगदान विशेष रूप से सराहनीय अछि . आय हिन्कर पुण्य तिथि (1923)पर भाव भीनी श्रधांजलि एवम कोटिश नमन .
Monday, 5 October 2015
लहर
सागर है तो लहरें उठेंगे ही ,
लहरें उठेंगे तो किनारों को छुएन्गे ही .
कौन रोकेगा भला इन लहरों को ,
देखना अब ये है कि
हदें पार करती हैं या
किनारे तक ही सिमट
के रह जाती हैं .
रिश्ते
रिश्ते एक पेड़ की तरह होते हैं
जैसे , मौसम आये - जाये _
पत्ते तो सूख जाते हैं पर
मज़बूती तो समय से देखी
जाती है
जड़ें गहराई और शाख
भर जाये तो मज़बूती
नहीँ तो पूरी की पूरी खोखली
हो जाती हैं .
तमाशा
बचपन में तमाशा देखना
बहुत बड़ा शौक था ,
जॉक था .
चले जाते थे उँगलियाँ थामे ,
बाबूजी के संग .
कभी खुद को निहारते ,
कभी तमाशे के रंग - ढंग .
हर इक अदाकार सयाने लगते ,
बड़े होने पर हर के मायने
बदले लगते .
क्या जानते थे _
जिस जोकर को देख
हम कभी हँसा करते थे ,
अब सूरते- हाल ये है कि
जोकर के मानिंद
अपनी जिंदगी जिया करते हैं .
पहले जिन बातों पे आती थी हँसी ,
आज वही हालात रुलाया करते .
चलो बहुत हो चुकी है शाम ,
थोड़ा खुद को सँवारा जाये .
बहूत जी लिये ग़म में ,
अब खुद को हँसाया जाये .
बेटी
बेटी में है चाँदनी की शीतलता ,
प्यार की है मूरत वो .
उम्मीदों की आस है ,
थोड़े दिन ही तो तेरे पास है .
फ़िर ये कैसे हालात हैं _
औरों की बेटी को रख सकते हो
बहू बना कर .
हाय रे तेरी किस्मत _
अपनी बेटी के लिये
जिंदगी में तो छोड़िये ,
कोख में भी ना दे पाये
थोड़ी जगह बना कर .
घर
घर - घर की रट
सुना करते थे ,
बाज़ारों में भी इनके मुत्तलिक
तमाशे हुआ करते थे _
कम दामों में किश्तों का
दावा किया करते थे .
हमने भी सोचा , चलो
इक घर खरीदा जाये ,
वो घर , जो है सपनों का घर ,
अपनों का घर ,
खुशियों का घर .
यह सोच कर चले ,
चलो कुछ घर दोस्तों के
देखा जाये .
घर की शक्लें देखीं तो
अजब हाल हुआ ,
पसीने से बुरा हाल हुआ .
अजायब घर भी कभी देखे थे हमने ,
पर अब हर इक घर ,
अजायब घर सा हुआ .
इंसान की शक्लों में दिमाग़
को बसते देखा ,
घर जिसे ' दिल का मंदिर '
कहते थे कभी ,
उसे विलीन होते हुए देखा .
क्या करें ऐसे घर का ,
जहाँ ना तालमेल हो दिमाग
और दिल का .
चलो वापिस चले अपनी
झोपड़ में ,
जहाँ खुशियों का पुलिंदा
बसा है मन में .
क्या हुआ तेरे देश को
चाणक्य कैसा था गुरूर
तुझे अपनी सीख का .
जिस देश को तेरी सीख ने
साम्राज्य बना दिया ,
वहाँ का अब बुरा हाल है .
राजनीति बदहाल है .
लोग हैरान हैं
नेताओं से परेशान हैं .
कानून सच में अंधा है ,
ईमानदारों के पास ना कोई
धँधा है .
अब तो भगवान भी
पत्थर से हो गये ,
जाने कहाँ वो ' सोने की चिड़िया' वाले
दिन खो गये .
प्रजातंत्र का दिवाला निकल गया ,
हर जगह हवाला ही हवाला
रह गया .
अब कैसे जिये इंसान
इस घुटन के माहौल में ,
जहाँ बंदर - बाँट और
जमुरे- मदारी सा हाल रह गया .
पत्नी " कवयित्री "
यदि किसी की पत्नी कवि हो जाय ,
उस घर का हाल कोई बताय .
पत्नी तो हो जाय कवि ,
पति को कविता समझ ना आय .
और फ़िर बहाने दस बनाय .
पति आँखें लाल दिखाय , जब
खाने में नमक ना पाय और स्वादविहीन हो जाय समय पर भोजन ना मिल पाये क्योंकि ,
कविता की कोई पंक्ति याद आ जाय .
समय पर कोई मूल काम बिसराय,
तब घर में तांडव खूब मच जाय .
ऑफिस से घर आने में घबराय
कि कहीँ पत्नी चाय के बदले
कोई नई कविता ना सुनाय.
मेरी जैसी पत्नी के लिये
है कोई जतन तो बताय .
मृग - मरीचीका
भगवान की पूजा कर रहा इंसान ,
फ़िर भी मज़बूर हाल में जी रहा इंसान .
कहने को तो सुलझा हुआ है इंसान ,
पर अपने ही उलझन में उलझा हुआ हैं इंसान .
कैसी हैं ये रवायतों _
पूजा की , आराधना की
पत्थर की मूरत को तो
खूब सुमर रहा इंसान .
पर, इंसानों की पूजा को ही
भूल गया इंसान .
संतानों की आशा में ,
परिवार की शुभेच्छा में ,
पूजता गया देवताओं को खूब इंसान .
पर्वों - त्योहारों में खुशी देखी ,
पर नित्य इंसानों की सेवा को
भूल गया इंसान .
क्यों की उत्पत्ति मृग की ,
लो हो गया मृग - मरीचीका की कल्पना ,
जिसके पीछे भाग रहा इंसान और ,
भाग रही दुनियाँ .
ख़रीदार कैसे - कैसे
लोग यूँ ही दुकानदार को
बदनाम करते हैं ,
ये तो हम ही हैं _
जो अपना इमान बेचते हैं .
औरों की नहीँ , खुद की
देखी बयान करती हूँ ,
हैरान तो तब हुई _
जो देखा किसी ख़रीदार को
एक ही चीज़ की दो फर्मायिश करते हुए _
" भैया एक तो शुध्द घी
हमारे खाने को दो और ,
दूसरी वाली
भगवान को चढ़ाने को और
ज्योति जगाने को दो .