कहते हैं हिंसा का कोई धर्म नहीँ होता . मेरा भी यही मानना है .
जिसका आगाज हो मजबूरी , अनेकों हो उसपे तौहमते - इलज़ाम , और अंजाम हो इंतकाम , फ़िर उसके लिये _ क्या होना हिंदू और क्या होना मुसलमान . _ _ _ _ _ Aparna Jha
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