चाणक्य कैसा था गुरूर
तुझे अपनी सीख का .
जिस देश को तेरी सीख ने
साम्राज्य बना दिया ,
वहाँ का अब बुरा हाल है .
राजनीति बदहाल है .
लोग हैरान हैं
नेताओं से परेशान हैं .
कानून सच में अंधा है ,
ईमानदारों के पास ना कोई
धँधा है .
अब तो भगवान भी
पत्थर से हो गये ,
जाने कहाँ वो ' सोने की चिड़िया' वाले
दिन खो गये .
प्रजातंत्र का दिवाला निकल गया ,
हर जगह हवाला ही हवाला
रह गया .
अब कैसे जिये इंसान
इस घुटन के माहौल में ,
जहाँ बंदर - बाँट और
जमुरे- मदारी सा हाल रह गया .
बड्ड नीक कविता
ReplyDeleteसत्ते पसरल अछि बदहाली चारू भर