इतना एहतराम ,
इतनी जर्रानवाजिशें ,
कि दोस्तों की खातिर
खुद को सरेआम कर दिया .
ये दुनियाँ अब वो जगह तो नहीँ ,
कि जहाँ वादों को पूरा करने का
इंतजाम कर दिया ,
सब कुछ दोस्त के नाम कर दिया .
" भूल जाऊँ दोस्तों को ,
ऐसा हो नहीँ सकता " ,
ऐसा कह कर भी खुद को
तसस्ली दे पाओगे क्या ?
जहाँ दोस्तों में भी तुमने _
अच्छे , बुरे , खरे , खोटे का
नाम देकर अंजाम दे दिया .
फ़िर बताओ_
कैसे लिखोगे ग़ज़ल और नज्में
दोस्तों पर ,
जिन्हें विशेषणों का ईनाम दे दिया .
_ _ _ _ Aparna Jha
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