मुझे ऐसा लगता है कि किसी निष्कर्ष पर पहुँचने में जल्दी- बाजी नहीँ करनी चाहिये और एक बार निष्कर्ष पर पहुँच गये तो उसपर कायम रहना चाहिये .
_ _ _' तौबा - तौबा '
क्यों किया अपना ये हाल ,
तौबा - तौबा .
कैसे कर लिया इकरार ये ,
तौबा - तौबा .
हो गये इश्क में इनकार ,
तौबा - तौबा .
अरे ज़रा देख तो लेते
ज़माने की चाल तौबा .
फ़िर तो ना होता ये हाल
तौबा - तौबा .
किस बात की है रन्जिशें,
किस बात से है तौबा ,
क़दम पहले ही रखते सम्भल के ,
तो ना करनी पड़ती आज ,
हर बात पे तौबा - तौबा .
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