Tuesday, 6 October 2015

लर्निन्ग , अर्निन्ग और रिटर्निंग

" लर्निग  , अर्निग , रिटर्निंग "
आप भी सोच रहे होंगे कि ये क्या ! शीर्षक अंग्रेजी में और विचार हिन्दी में ? हुआ यूँ कि इन दिनों इसी सोच में पड़ी थी कि आखिर समाज को कौन सा घुन लग गया जिसमें रोटी , कपड़ा, मकान से अलग आस्तित्व की लड़ाई ने मशरूम की तरह फैलना शुरू कर दिया है . सरदार पूर्ण सिंह जी (अगर लेखक का नाम गलत लिया हो तो कृपया सुधारें )का लेख " गेहूँ  और गुलाब " जिसे मैं ने 8वीं कक्षा के सिलेबस में पढ़ा था , अब उसके मायने समझ में आ रहे हैं . मुझे इसकी अभिव्यक्ति में कठिनाई हो रही थी . आज जब प्रात: दैनिक भास्कर के पन्ने उलट रही थी तो मुझे अपने सोच की अभिव्यक्ति_  आत्मबोध कराने वाले विश्वख्याति प्राप्त , आध्यात्मिक गुरु महात्रया रा के शब्दों में मिला . उनका मानना है कि जो अभी 30से 40 की उम्र के हैं , उनसे देश बदलने की उम्मीद करना गलत होगा . क्योंकि इन्हें हमारे शिक्षा प्रणाली ने अलग सोच के साथ तैयार किया है . इसमें कम्पीटीशन है . नाकामयाब होने का दुःख है . पैसा कमाने की इच्छा है . हमें नई पीढी पर ध्यान देना होगा . छोटे-  छोटे बच्चों को लर्निग , अर्निग और रिटर्निंग की शिक्षा देनी होगी ताकि वे खूब सीखें, खूब कमायें और फ़िर उस कमाई को समाज में लगायें. और ये कार्य अकेले शिक्षा जगत ही नहीँ अपितु पूरे सामाजिक माहौल को सकारात्मक सोच में परिवर्तित होना पड़ेगा तभी हम स्वस्थ समाज की कल्पना कर सकते हैं

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