जब से शब्द बने मीत मेरे
सफल हुई मेरी साधना
ये शब्दों से मेरी आराधना
हैं मेरे साहित्य की रचयिता
ये मेरे मीत भी
जीवन संगीत भी
मन की आवाज़ ये
अंतर्द्वंद का आभास भी
ये तत्व बोध भी मेरे
संवाद और संवाहक तुम तक
ये मेरे
ख़ुशी भी जता लेते हैं
मेरी पीड़ा को अंतस से बाहर
निकाल देते हैं
तन्हाइयों के संगी
आये जो सामने जो तुम कभी
बावरा मन को मेरे समझाये यही
और मेरे प्रेम को
तुम पर जताये भी यही
ये शब्द नही सरस्वती का अवतार है
जीवन को मेरे मिला
ये प्रभु से वरदान है
कर्तव्य यही मेरा हमेशा
बहुत सहेजना
संभालन भी होगा
अधिकार को अपने
बताना भी होगा
समाज निर्माण की जो बात हो
तो शब्द को ढाल बनाना होगा
जो काम ना कर पाए जहां तलवार
संपूर्ण व समग्र होती हैं शब्दों के वार.
@Ajha.16.03.17
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