Tuesday, 6 October 2015

शब्द

जब से शब्द बने मीत मेरे
सफल हुई मेरी  साधना 

ये शब्दों से मेरी आराधना 
हैं मेरे साहित्य की रचयिता

ये मेरे मीत भी 

जीवन संगीत भी

मन की आवाज़ ये

अंतर्द्वंद का आभास भी

ये तत्व बोध भी मेरे

संवाद और संवाहक तुम तक

ये मेरे

ख़ुशी भी जता लेते हैं

मेरी पीड़ा को अंतस से बाहर 

निकाल देते हैं

तन्हाइयों के संगी

आये जो सामने जो तुम कभी

 बावरा मन को मेरे समझाये  यही

और मेरे प्रेम को 

तुम पर जताये भी यही

ये शब्द नही सरस्वती का अवतार है

जीवन को मेरे मिला 

ये प्रभु से वरदान है

कर्तव्य यही मेरा हमेशा

बहुत सहेजना 

संभालन भी होगा

अधिकार को अपने 

बताना भी होगा

समाज निर्माण की जो बात हो

तो शब्द को ढाल बनाना होगा

जो काम ना कर पाए जहां तलवार

संपूर्ण व समग्र होती हैं शब्दों के वार.

@Ajha.16.03.17










 

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