Tuesday, 6 October 2015

मृग मरीचीका

"मृग मरीचिका"
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भगवानक पूजा कs रहल हर इंसान
मजबूर हाल में जी रहल इंसान
कहs लेल तs सुलझल छै इंसान
मुदा अपने उलझन में उल्हल छै इंसान .
इ केहन चलन
पूजा के, अराधना के
पाथरक मुरूत के खूब
सुमरि  रहल इंसान
बिसरी गेल पूजनाय मनुख के इंसान
संतानक आशा में,
परिवारक शुभेच्छा में
खूब सुमिरल गेल भगवान
खुशियो बुझलक पर्वेतिहार  में
मुदा नित्य मनुखक सेबा
केनाय  बिसरल इंसान
किया उत्पत्ति केलहुँ मृग के
तै भेल  मृग मरीचिका के कल्पना
ताहि पाछू भागी  रहल सब इंसान
आ भागि रहल दुनिया 
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                                          --Aparna Jha

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