Wednesday, 2 December 2015

'आह ' से 'वाह ' का सफ़र कितना कुछ कह जाता है . 'आह ' में रहकर प्राणी सफर 'वाह ' की कर जाता है . कितनी उम्र गँवा जाता 'आह ' में बस इक 'वाह ' के पाने में . जब तक जीया 'वाह ' की खातिर तब तक 'आहों ' में ही जीवन बीता . जब से 'वाह ' की चिंता छोड़ी 'आह ' ने भी दामन मेरा छोड़ दिया . जीवन से बस इतना सीखा खुद कॊ ऐसे प्यार करो , विश्वास करो ना फ़िर ख्वाहिश हो पुनर्जन्म की ना ही किसी से उम्मीद रहे . फ़िर क्यों कोई 'आह ' भरे , फ़िर क्यों कोई 'वाह ' करे.

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