रिश्ता जो तुम से बना
उसकी कोई सूरत ना थी .
क्योंकर मिलने का बहाना ढूँढते
उसकी भी तो कोई वज़ह ना थी .
कैसी वो आराइश , कैसा वो वाबस्ता !
अब जो मिले हो तो कहते हो कि
तेरी ज़रूरत ही नहीँ .
पर ये भी तो सही है ना ,
कि ,
हाथ छूटे से रिश्ते
टूटा नहीँ करते .
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