Monday, 28 December 2015

वो शब . . .

गुजिश्ता शब की  बात है
भर शब कोई गा रहा था
मानो किसी को वो बुला रहा .
समा भी ऐसी , मानो ,
चाँदनी भी शरमाई - सी ,
काली घटा बादलों में मुस्काई -सी
आहटें , ऐसी कि किसी के आने से ,
सहम गई नार कोई दीवानी -सी .
गीत की तास्सिर  ऐसी , मानो
नार - दीवानी मंद-मंद - मस्त चाल से
अपने दीवाने के तार पर चली आ रही .
हवाओं की शीतलता ,
उसे घूंघट ओढा रही ,  मानो
सबकी नज़र से उसे बचा रही  .
इतनी वो प्यारी शब , मानो
मुझे भी अपनी गुजिश्ता याद करा रही .
जैसे - जैसे सुर - लहरियाँ
मेरे कानों तक आने लगी , मानो
कोई बिसरी - सी कोई , सामने मुस्कुराने लगी .
जितनी भी चाह रहा उसे भूल जाना  ,
क्योंकर वो मेरे क़रीब आ रही थी  .
वो जो गा रहा था , शायद
अपने दिल की गुनगुना रहा था .
शायद अपने भी तार कुछ मिल रहे थे
तभी तो उन तानों पर ,
मैं भी खींचा चला आ रहा था , मानो
अपने अजीजो - जान को मना रहा था ,
ना जाने किस बात से मैं
वाबस्ता हुआ जा रहा था .

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