ये घटा ,
ये छटा ,
ये लाली
उसके पीछे हरियाली
मदमाती , लहराती
छेड़े अपने आने की तान
ये है झरने की गान .
मानो , अपने प्रियतम को ढूँढती ,
मंजिल को चूमती ,
आ पहुँची है मक़ाम तक .
चित्र : आदरणीय मीनाजी के wall से .
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