मुहब्बत की दास्तां ऐसी कि ना आगाज का पता ना अंजाम का पता आशाओं और उम्मीद में जीने वालों में किस्से इसके अधूरे ही रहे , वर्ना ना कोई राधा होती ना मीरा ने जन्म लिया होता ना ही किसी सूफी का दीद हुआ होता .
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