आपने तो अपनी गुज़ार ली ,
जो गुजारनी थी .
अब है हमारी बारीै
लगा कर रेत में पौधे
है निभानी बहुत बड़ी जिम्मेदारी .
सींचा इस उम्मीद से है
कि शायद कभी ना कभी
रेत भी मिट्टी हो जाय .
बार - बार पौधे को गिरता देख
उम्मीद बँध आती है .
बार - बार आँखें मींचते भी
इक रौशनी नज़र के पार
उतर आती है के _
तुम नाराज़ ना होना ,
नाउम्मीद ना होना ,
बेशब्र ना होना , क्योंकि
वो सुबह ज़रूर आयेगी , जब
सेहरा में बहार छायेगी
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