शायद इससे सच्चा रिश्ता कुछ नहीँ .
तुम मैं हूँ ,
मैं तुम हो .
तुम हो तो मैं हूँ ,
और नहीँ
बस कुछ भी नहीँ .
कायनात भी हम से - तुम से है .
हम नहीँ - तुम नहीँ
तो कुछ भी नहीँ .
पर ये जाने कौन , माने कौन ?
यही सत्य है ,
यही शाश्वत है ,
फ़िर ये दुनियाँ क्या
और मोह - माया क्यों ?
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