Thursday, 24 December 2015

क्रांति

कविता समूह के एक कवि मित्र जिनका सम्बन्ध जम्मूकश्मीर से है , उन्होंने वहाँ के हालात पर कविता के माध्यम से अपनी बेचैनी को रखा  . मेरा ये मानना है की हर राज्य के अपने मुद्दे को लेकर वहाँ की जनता परेशान है . मेरी जो भावनायें हैं , उसे व्यक्त करती हूँ .कि _

पैमाना अभी भरा नही ,
इसलिये जुबां लड़खड़ाती है ,
क़दम लड़खड़ाते ,
सोहबतें  नाखुशगंवार है
महफिलें सजतीं तो हैं ,
पर नासाज हैं .
लोग बदहाल है .
यकीन बस इतना है ,
जिस दिन पैमाना भर गया _
तीर या तो आर होगा
या फ़िर पार होगा .

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