Saturday, 14 May 2016

"भिखारी "

चिलचिलाति धूप में वो
भिखारी हाथ पसारे
कहता जा रहा _
दे दाता के नाम,होगा तेरा भला
कह बैठी मैं भी उससे _
ना दूँ तुमको जबकि हो
तुम हट्टा -कट्टा
क्यों करना कुछ तुझको
नहीँ भाता
था वो इंसान कुछ ज़हीन-सा
पर वो चुप ना बैठा ,आई ना
ना उसे तनिक भी शर्मो -हया
दिन -भर जो घूमूँ भीख माँगने
है मुझे भी तो परिवार पालने
सेहत भी तो ज़रूरी है
ये हम जैसों की मजबूरी है
फ़िर जो उसने शुरू किया बोलना _
साहब मैं तो एक हूँ इक भिखारी
भीख माँग के पेट पालता
पर खुद की सोचिये ,क्या
औकात है आपका
पढ़े -लिखे रईस जान पड़ते हैं आप
पर तरक्की के लिये
कहना पड़ता है  'गधे को बाप '
भीख माँगने को कैसी -कैसी
जगह हो ढूँढते
सीधे 'सवा -डेढ़ ' का भोग लगा
भगवान को हो आप आंकते
नेता भी इसमें कुछ कम नहीँ
गरीबों का इनको ग़म नहीँ
वोट के लिये बांटे रोटी और कम्बल
करोड़ों का खेल हज़म
कर जाते अपने अंदर
व्यापारियों का हाल तो देखो
देश बिके ,नहीँ ख़याल तो देखो
पॉकेट में इनके माल तो देखो
धर्म के ठेकेदारों का भी वही हाल है
इनकी तो चल पड़ी
अच्छी दुकान है.
देवों से भी नाता इनका ऐसा
खेल जमूरे -मदारियों वाला हो जैसा
साहब मैं इक अदना सा भिखारी
नंगे तन अपना पेट पाल रहा हूँ
जो भी आ जाये झोली में
संग परिवार के खुशियाँ
बाँट रहा हूँ
पर उनका क्या जो
पढ़े -लिखे चोरी ,गारत ,क़त्ल
पर आमदा हैं
देश को टूकड़ोँ -टूकड़ों में बेच
खा रहे हैं
इतना सब कह कर ,तभी उसने
दिया विराम अपने बातों पर
ध्यान कुछ मेरा भी मोड़ा ,
कुछ यूँ कह कर
जी आप भी कुछ फरमा रहे थे
रात भी हो गई और आप भी भूलते
जा रहे
कल फ़िर मिलूंगा इसी रास्ते पर
याद आ जाये तो बता दीजियेगा वो सब
फ़िर सोचती रही मैं यह सब शब भर
क्या एक अदना आदमी भी सोच सकता
यह सब
फ़िर कैसे घुन लग गया
"देशभक्ति " पर.
@Ajha 14.05.16

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