Tuesday, 3 May 2016

दस्तुरे जिंदगी

हर रात इक मौत को जीते हैं
हर इक सुबह एक
नई जिंदगी होती है
मौत भी कुछ पल
रुक के पलट जाती है
हर बार यही मैं कहता हूँ
रुक तो जा ज़रा कुछ पल के लिये
रस्मे-  दस्तूरे - ज़माने की 
बाँकी हैं निभाने  अभी . @ Ajha . 26. 03. 16

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