हर रात इक मौत को जीते हैं हर इक सुबह एक नई जिंदगी होती है मौत भी कुछ पल रुक के पलट जाती है हर बार यही मैं कहता हूँ रुक तो जा ज़रा कुछ पल के लिये रस्मे- दस्तूरे - ज़माने की बाँकी हैं निभाने अभी . @ Ajha . 26. 03. 16
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