Thursday, 26 May 2016

सूफी प्रेम

हे प्रिय ! देखो ना
कितना आनंदित हूँ
आह्लादित हूँ
एक अलौकिक नूर से नहाई
चाँदनी रात में
इस सुन्दर सी,अद्भुत सी
अन्गुरी बागीचे में
फूलों की सुंदरता में
खुश्बुई आबोहवा में
अनेकों सुर लहरियाँ
पक्षियों की चहचहाहट
जुगनुओं की चमचमाहट
बसंत उत्सव मनाती ये रात
अनेकों खुशियों की ले के सौगात
पर हाँ ,क्या करना इनका
जब तुम ही नहीँ पास
और जब तुम हो पास
क्या ज़रूरी है _इनका साथ ?

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