लोग खुश हुए थे तब
वनवास काट राम अयोध्या
आये थे जब
चहू दिस शोर मची सर्वत्र
नगर में होगा रामराज्य ही बस अब
कैसी खुशी कितनी खुशी में
जिये जा रहे थे तब
किसी ने ना देखा अश्रु धार को
जो बहे सुनयना , सुमित्रा
सीता के आँखों से लगातार वो
राजधर्म का पालन कर
हुए राम ,लक्ष्मण भरत महान
कैसे भूला स्त्री त्याग को ये इंसान
बेहतर हो जो समझ जाओ
सीता की वंशज हो
त्याग ,भाव की मूरत खुद में
तुम बन जाओ
ना कर पाये जो इस बात का ख़याल
समाज तुम्हें तब बतलायेगा
ऊँची कितनी ही कर लो तुम उड़ान
एक डोर ही काफी है
तुम्हें ज़मीन पर ले आयेगा
पर ये कभी ना भूलना
कृष्ण जन्म भी एक साधक
शंकराचार्य भी है प्रवर्तक
राम बन धोबी पाट हर कोई बता
सकता , चला सकता
इंसान वही वो सच्चा है
'वैराग्य' पथ पर जो चल सकता है.
Wednesday, 25 May 2016
रामराज्य और स्त्री
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