Thursday, 5 May 2016

एक इश्क ऐसा भी . . .

ना था इल्म इश्को - खुदाई - रहमत का
मासूमियत में यूँ ही खुद को जीते देखी थी

ना थी परवाह दुनिया की
ना ख़ंज़र में वो धार , ना वो वार देखी थी

ना कोई खूँखार दिखा था
हमने हर एक में अपने जैसी यारी  देखी थी

ना कोई ग़म ज़माने का
हर किसी में एक एहतराम देखी थी

तुझसे मिलने का सिलसिला क्या कहें हम
हमने तो कायनात बदलते देखी थी

सुना था  खुदा मिलने से हर जर्रा भी अपना हो जाता
पर हमने कायनात को सिमटते देखी थी

हमको जो मिला वो तुम्ही से मिला
हमने तो अपनी नज़रों की सूरत बदलते देखी थी

कहते हैं मोहब्बत में दरो- दीवार , बंदिशें मिट जातीं हैं
हमने तो खुद के मकां को ताश के पत्तों के मानिंद ढहते देखी थी .
@ Ajha .
#KaafiayaMilaao

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