शरारत जितनी चाहे कर लो शोखी कुछ ठीक नहीँ
जज्बाती हूँ पर नकारा सोच नहीँ
हार के भी जिंदगी जीना है , पर
दीदार- ए - क़यामत का कोई शौक नहीँ .
जिंदगी को मर - मर के जीना मुझे गवारा नहीँ
जंग जो इक छिडि है जिंदगी के संग
अपनी हकूके- कूवत से लड़ूं
बड़ी मुश्किल से मिली एक उम्र
जाया ना हो , सोचती हूँ
अपनी मंज़िल तक पहुँचूं
हर बार बहार ही मिले ,
ये तो ज़रूरी नहीँ
क्या हुआ जो
एक बार मुश्किल में गुजरूँ
मैंने चमन उगाया है
फूलों में भर कर
चलो इक बार राहे- कांटों से
निक़ल कर देखूं .
दर्से - जिंदगी सीखा गई बहुत कुछ
बस खुद पे ऐतबार कर
सफ़र - ए - अंजाम तक पहुँचूँ .
@ Ajha . 28. 03. 16
Aparna jha
Tuesday, 3 May 2016
शरारत
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