आज बिहार में शराब बंदी की जो बातें हुई हैं मन कई तरह से विचार मंथन में लगा हुआ है . एक तो यह की _
गलतफहमियां इतनी प्यारी थीं
हकीकत को अपनाना गँवारा ना हुआ .
@ Ajha .
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और दूसरा कि _
सियासत का गलियारा
कुछ दुनियाँ ही अजीबो -
आवारा
लोग कवियों को बेवजह
बदनाम करते हैं
पर सियासतरान भी
अपनी दुनियाँ का बहुत
एहतराम करते हैं
कवि तो अपनी ख्यालों की
दुनियाँ में ही जी लेते हैं
पर ये सियासति हकीक़त में
अंजाम दे देते हैं .
ना दीन - ओ - धरम का
अहतराम ,
कैसे - कैसे कामों पर
ईनाम
गैरतमन्दों की यहाँ
ज़रूरत नहीँ
बेईमानी , सितमगर ही यहाँ
नाम कर जाते हैं .
कैसी - कैसी होतीं हैं बातें
बेसिर- पैर की इनकी
लोगों की बेबसी
बस इनके काम कर
जातीं हैं
कितना आसान है
बहलाना गरीबों को
इनके लिये
गरीबी को अपने
जीत का सामान
बना लेते हैं
इंसानी रिश्तों का यहाँ
कोई मोल नहीँ
खूनी - खेलों को
अपने खेलने का सामान
बना लेते हैं
बहन - बेटियों का
कोई ख़याल नहीँ इनको
रंगरेलियां बना अपने
शौक ओ जॉक का
मेहमान बना लेते हैं
आज फ़िर हवा किस
ओर चली
'मदिरालय बंद 'की
बात सुनी
क्या सोचें _
सियासत जाग उठा, या
हमें फ़िर से है पिलाई गई .
@ Ajha .07. 04. 16
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