जिंदगी एक पहेली है
मुहब्बत हुई तो सुकून कहाँ
और ग़म है तो सुकून कहीँ खो गया
हर हाल में हैं लोग परेशान
इस मसले का कोई हल तो बता .
दरया है तो भी प्यासा है
समंदर है तो वो भी खारा है
तिश्नगी ऐसी भी क्या
पानी तो दिखाई देता नहीँ
रेतों में दिख रहा पानी का नज़ारा है
ऐ बागवान ! ये लगाया तुमने कैसा चमन
फूल ही फूल दीख पड़ते हैं पहले
काश कि काँटे ही दिखाई देते पहले
मन सुकून मिलता कांटों में चल लिया बहुत
अब आखिर में जन्नत का नज़ारा होगा .
क्यों लोग दुनियाँ में उम्मीदे बहिश्त में गुजार
जाते है जीवन को
सौ गुनाह कर जाते है इक डर के मारे
ऐसे बहिश्त की ख्वाहिश क्या कीजै
जिंदगी सारी जो गुजार दी हमने दोजख में.
हर पल सुनते आये थे " कर भला तो हो भला
जिंदगी बीत गई भलाई में
ना था मालूम कि राहे बशर यूँ मुश्किल होगा
मन को बस यूँ मना लेते कि _
ऐ खुदा तू मिल मुझे , तेरे पूरे हिसाब का रफा - दफा होगा .
@ Ajha . 03. 04. 16
aparna jha
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