Tuesday, 3 May 2016

मौत से मुलाकात

बैठे थे समंदर के किनारे
लहरों को थे ताक रहे , कि
मौत से मुलाकात हो गई
बातों - बातों में कई बात हो गई
कितनी ही पोशिदा बातें
इजहार हो गईं
जिस सूरते - हाल को सोचा ना कभी
उसी हाले- बयानी की हिम्मत
आज मुझ से हो गई
कह दिया मौत से बाहोशी में
येक- बा- येक _
ऐ मौत ! अब ना रहा तेरा इन्तिजार
अब ना डरूँ मैं तुझ से बारम्बार
इस क़दर मैं जिये जा रही कि
ज़िंदगी जीने की तुझसे भी
आहट आ रही
कैसे कहा था तूने एक बार
आ बैठ तूँ मेरे पास
मुझे भी जीने की है आस
मैं भी कुछ पल के लिये सही
जी तो लूँ  ज़रा
पर तूँ पहले ये  बता
कैसे करती है इस क़दर
तू ज़िंदगी का फ़ैसला
वो तुम्हें ग़म पे ग़म दिये जाती है
और इस ज़हर को तुम
हँस के पिये जाती है
तुम्हें ख्वाबों में चीखते- चिल्लाते देखा
खयालों में भी खूब मचलते देखा
तेरे जज्बातों को तुझसे ही कुचलते देखा
ऐसी सितमगरी में तुझे जीते देखा
क्या तेरे हौंसले हिलते नहीँ
क्या जलजले से नहीँ तेरा कोई वास्ता
बातों से बेख़बर
जश्न जीने की तू मना रहा
क्या मैं समझूं इसे तेरी मज़बूरी !
क्या जीना है इतना ज़रूरी ?
हँस कर मैंने भी कह दिया
पूरा एक अह्बाब लिख दिया 
ऐ मौत !
तूँ मेरे आशिक को नहीँ पहचानता
वो मुझसे करता है प्यार बेइन्तहाँ
फ़िर भी वो मेरी आशिकी से है हैरां
नहीँ जानता उसे है  क्या करना
वो यह भी तो नहीँ जानता
उसकी माशूक ने है पा लिया
उसमें अपना खुदा
अब उसका है  बैरागियो का रास्ता
ना उसे खौफे - जुल्मत
ना तोहमतें ही कोई हादसा
वो तो इबादत में है रम गई
बैरागियों के संग है चल पड़ी
ऐ मौत ! जीने का सलीका
गर तुझे नहीँ पता
ढूँढ़ ले तूँ भी एक दरवेश
संग बैरागियों के झूम जा .
@ Ajha . 02. 05. 16

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